पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/४८४

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परमार्थयोगोपदेशवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६, (१३६५) जबलग चित्तबोध फुरता है, तबलग संसार है, अरु जब चित्तका अभाव होवै, तब मुक्त होवे, इस चित्तके अभावका नाम ब्रह्मबोध है ॥ हे रामजी । जैसे पवन ऊरताहैं, तैसे ब्रह्मविषे चित्तबोध है; अरु जैसे पवन ठहरि जाता है, तैसे चित्तका ठहरना ब्रह्मबोध है, जैसे और अफ़र दोनों पवनही हैं, जैसे चित्तबोध है, ब्रह्मबोध ब्रह्मही है इतर कछु नहीं, हमको तौ ब्रह्मही भासता है, चेतनमात्र शतरूप है. अरु अपने स्वभावविषे स्थित है. जिसको अधिष्ठानका ज्ञान होता है; तिसको निवृत्त भी वही रूप भासता है, अरु जिसको अधिष्ठानका ज्ञान नहीं, तिसको भिन्न भिन्न जगत् भासता है, जैसे एक बीजविषे पत्र दास फूल फल भासते हैं, अरु जिसको बीजका ज्ञान नहीं, तिसको भिन्न भिन्न भासते हैं ॥ हे रामजी 1 हमको अधिष्ठान आत्मतत्त्वका ज्ञान है, ताते सब विश्व आत्मस्वरूप भासता है, अरु अज्ञानीको नानाप्रकारका विश्व भासता हैं, जन्म अरु मृत्यु भासते हैं ॥ हे रामजी ! सब शब्द आत्मतत्त्वविषे फुरते हैं, सर्वका अधिष्ठान आत्मा है, निराकार निर्विकार है, अरु शुद्ध है, सबका अपना आप है, ताते सब विश्व आकाशरूप है, इतर कछु हुआ नहीं, जैसे तरंग जलरूप हैं, तैसे विश्व आत्मस्वरूप है; अरु चित्त जो फुरता है, तिसके अनुभव करणेहारी चेतनसत्ता है, सो ब्रह्म हैं, अरु तेरा स्वरूप भी वही है, ताते अहं त्वं आदिक जगत् सब ब्रह्मरूप हैं, संशयको त्यागिकार अपने स्वरूपविषे स्थित होटु, अरु पाछे तुमको कहा है, द्वैत अद्वैत सब उपदेशमात्र हैं, एक चित्तकी वृत्तिको स्थित कारकै देख, सब ब्रह्म हैं, इतर कछु नहीं, निषेध किसका कारये ॥ हे रामजी ! चित्तकी दो वृत्ति ज्ञानवान कहते हैं, एक मोक्षरूप है, एक बंधरूप है, जो वृत्ति स्वरूपकी ओर फुरती हैं, सो मोक्षरूप है, जो दृश्यकी ओर फुरती हैं, सो बंधरूप है, जो तुमको शुद्ध भासती है, सोई करहु, अरु जो दृष्टा है, सो दृश्य नहीं होता, अरु जो दृश्य है, सो द्रष्टा नहीं होता, आत्मा तौ अद्वैत है, ताते दृष्टाविषे दृश्य पदार्थ कोऊ नहीं, तुम क्यों दृश्यकी ओर फुरते हौ, अनहोती दृश्यको क्यों ग्रहण करते हौ, अरु द्रष्टा भी तेरा नाम दृश्यकार होता है, जब दृश्यका अभाव- जाना, तब