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भुशुंडोपाख्यानेऽस्ताचललाभवर्णन–निर्वाणप्रकरण ६.

स्थित हैं, अरु कई विदितवेद जीवन्मुक्त पदविषे स्थित हैं, तिनके मध्यम नायक अलंबुसा देवी हैं, जैसे विष्णुका वाहन गरुड है, तैसे देवीका वाहन काक है, सो देवी अष्टसिद्धिके ऐश्वर्यसंयुक्त है, सो देवियां एक कालमें समागम करत भई, अरु विचार करत भई, जगत‍्के पूज्य तुंबर अरु भैरवको पूजत भई, अरु विचार किया कि, सदाशिव हमारेसाथ भावसंयुक्त नहीं बोलता, अरु हमको तुच्छ जानता है, हम इसको कछु अपना प्रभाव दिखावैं, प्रभाव दिखायेबिना कोऊ किसीको नहीं जानता, ऐसे विचार करिकै उमाको वश करि दुराय ले गई, अरु वहां उत्साह किया। मद्य, मांसादिक भोजन करत भईं, अरु मायाके छल करिकै पार्वतीको मारिकरि चावलकी नाईं रांधा, अरु नृत्य करने लगी, उसके कछुक अंग रांधे हुए सदाशिवको आनि दिये, तब सदाशिवने जाना कि, मेरी प्यारी पार्वती इनने मारी है, ऐसे निश्चय करिकै कोपने लगा, तब उन देवियोंने अपने अपने अंगते उसके अंग निकासे, सौरीने नेत्र निकासे, कौमारीने नासा निकासी, इसप्रकार अपने अपने अंगते निकासकरि तैसीही पार्वतीकी मूर्ति लाय दीनी, अरु नूतन विवाहकरि दिया तब सदाशिव प्रसन्न भया, सर्व ठौर उत्साह आनंद किया, तब सर्व देवियां अपने अपने स्थानको गईं, अरु चंद्रनाम काक जो अलंबुसा देवीका वाहन था, सो ब्रह्माणीकी हंसिनीसाथ क्रीडा करत भया, क्रम करिकै सबसे रमण क्रीडा करी, तब उन सबको गर्भ प्राप्त भये, अरु हंसिनियां ब्रह्माणीके पास गईं, तब ब्रह्माणीने कहा, अब तुमको मेरे उठावनेकी शक्ति नहीं, तुम गर्भवती भई हौं, जहां तुम्हारी इच्छा होवै तहां जाव, बहुरि फिरि आवना॥ हे मुनीश्वर! ऐसे कहकर ब्रह्माणी निर्विकल्प समाधिविषे स्थित भई, अरु नाभिसरोवर जो ब्रह्माजीका उत्पत्तिस्थान है, तहां जाय स्थित भई, तिस तालके कमलपत्र उपर आय निवास किया, जब तहां केताक काल व्यतीत भया, तब उन हंसिनीने तीन तीन अंडे दिये, जैसे वल्लीते अंकुर उत्पन्न होता है, तैसे उनके एकविंशति अंड क्रमकरि उत्पन्न भये, तिनको फोडत भई, जैसे ब्रह्मांड खपरको फोडिये, तीन अंडेते हमारे अंग उत्पन्न