पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/५४०

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सप्तप्रकारजीवसृष्टिवर्णन-निर्वाण प्रकरण, उत्तरार्द्ध ६. (१४२१) फुरता है, परंतु सोया पड़ा है ॥ राम उवाच ।। हे भगवन् ! जब वह पुरुष अपने कल्पविष जागा, तव यह उसको क्या भासै अरु जव वह न जागै, अरु वहां कल्पका प्रलय हो जावै, तब उसके शरीरकी क्या अवस्था होवे, अरु जब यहां ज्ञानकी प्राप्ति होवै, तब उस शरीरकी क्या अवस्था होवै, सो क्रम कारकै कहाँ ? ॥ वसिष्ठ उवाच ।। हे रामजी ! जब वह पुरुष अपने कल्पविषे जागै, तव यह जागृत उसको स्वप्न भासै, जव वहां न जागै, अरु उस कल्पकी प्रलय होवै, तब वह जीव वहाँ चेष्टा करै, अरु जव ज्ञानकी प्राप्ति होवै, तव उस शरीर अरु इस शरीरकी वासना इकट्ठी होकार निर्वाणको प्राप्त होवै, अरु जब ज्ञान न प्राप्त होवै, तव उसी जीवको इस शरीरको त्यागकर अपर जगद्धम भासि आवै, आपको पूर्वहीवत् जाने, भावै न जानै, परंतु जगतद्धम विना ज्ञान नहीं मिटता ॥ हे रामजी ! यह अरु वह दोनों तुल्य हैं, ब्रह्मसत्ता सर्वं ठौर समान प्रकाशती है ॥ हे रामजी! जैसे गूलरविषे मच्छर होता है, तैसे यह जीव भी भ्रमकरिकै फुरते हैं, सो यह जाग्रत् कही है, जो स्वप्नविषे जाव है, स्वप्न जागृत् इसका नाम है, अरु यह पुरुष वैठा है, अरु चित्तकी वृत्ति ठहर गई है ॥ १ ॥ अरु निद्रा नहीं आई तिसविर्षे मनोराज्य हुआ, तिस मनोराज्यविषे जगत् हुआ, तिसावषे दृढ़ भावना हो गई, अरु पूर्वकी वासना विस्मरण भई अरु यह सत्य भासी अरु मनोराज्यका शरीर रचा वही आधिभौतिकता दृढ हो गई, तिसका नाम संकल्प जागृत है ॥२॥ आदि परमात्मतत्त्वते फुरा, अरु निश्चयात्मपदविषे रहा, अरु जगत् जो भासा तिसको संकल्पमात्र जाना. तिसका नाम केवल जागृत है ॥ ३॥ आदि परमात्मतत्त्वते फुरणा हुआ, तिसविषे सृष्टि हुई, तिसको सत्य जानकारि ग्रहण किया, अरु स्वरूपका प्रमाद हुआ, अरु आगे जन्मतिरको प्राप्त हुआ, तिसका नाम चिर जागृत् है ॥ ४॥ जव इसविषे दृढ घनीभुत वासना हुई, अरु पापकर्म करने लगा, तिसके वशते स्थावर योनिको पाया, तब तिसका नाम घनी जागृत है, तिसीका नाम सुषुप्ति जागृत है ॥६॥ अरु जब इसविपे संतकी संगति अरु सच्छास्त्रोंके विचारकर वोधको प्राप्त हुआ,