पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/५५२

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परमशांतिनिर्वाणवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१४३३) क्या कहौं, जो यह कार्य है, अरु इसको यह कारण है, यह हुआ नहीं, वङ्कार कारण कार्य कैसे होवै; जो सर्व देश सर्व काल सर्व वस्तु होवै, सो कारण कार्य कैसे होवै, केवल अपने आपविषे स्थित है, जो है अरु नहींकी नाईं स्थित हुआ है, तिसविषे संवेदन है। जो जानना तिसके ऊरणेकरिकै जगत् भासता है, सो ऊरणा चेतनमात्रको विवर्त है, तिस विवर्त कारकै जगद्धम हुआ है, जब यही कुरणा उलटकर अपनी ओर आता है, तव जगद्धम मिटि जाता हैं, अरु जब फुरता है, तब ध्यान ध्याता ध्येयरूप होकार स्थित होता है, इसहीका नाम जगत् है, इसीविषे वैध भी होता है, अरु मुक्त भी होता है, आत्मावि न वैध है, न मोक्ष है । हे रामजी । जव तरंग घनभूत होकर बहते हैं, तव एक नदी होकार चलती है, तैसे जब वासना दृढ़ होती है, तब जगतरूप होकर स्थित होता है, अरु भासता है, जब ऐसी वासना हह हुई तव रागदोष संकल्पकार वैधायमान होता है, अरु जव वासना क्षय होती है, तब जगत्का अभाव हो जाता है। स्वच्छ आत्मा भासता है, जैसे शरत्कालको आकाश स्वच्छ होता है, तिसते भी निर्मल भासता है ॥ है रामजी ! यह जीव जो मरजाता है, सो मरता नहीं मुआ तव कहिये जो अत्यंत अभावको प्राप्त होवै, अरु जीनको न प्राप्त होवे, बहुरि जगत् न भास, ताते यह मरना नहीं, काहेते जो वहुरि जगत् भासता है, यह मरना सुषुप्तिकी नई भया, जैसे सुषुप्तिते जागे हुए जगत् भासता है, अरु वही चेष्टा करने लगता है; जैसे स्वप्न अरु जागृत होता है, वैसे मृत्यु अरु जन्म भी हैं, तोते मरना अरु जन्म हुआ, जब मरनेका शोक उपजै तब तिसविषे जीवनेका सुख आरोपिये, अरु जव जीवनेका हर्ष उपजे, तव तिसविषे मरणेका शोक अरोपित है, तव दोनों अवस्था शरीरकी सम रची हैं, जब यह अवस्था शरीरकी जानी, तब तेरा अंतर शीतल हो जावैगा, जब संवेदन फुरणेका अत्यंत अभाव हुआ, तव परमशांत हुए ध्यानध्याता ध्येय तीनोंका अभाव हो जावेगा अरु अज्ञान भी न रहेगा, जब ऐसा अभाव हुआ,तब पाछे स्वच्छ निर्मल