पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/५६८

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बोधजगदेकताप्रतिपादनम्-निर्वाणकरण, उत्तरार्द्ध ६. (१४४९) भेदभावना किसीके नहीं, कहूँ ऐसी सृष्टि देखी जो सब मोक्षकी लक्ष्मी कार शोभते हैं, कहूँ ऐसी सृष्टि देखी जो उपजिकरि शीघही नाश हो जावै, जैसे नख अरु केश उपजते हैं, कहूँ ऐसे देखे जो चिरकालपर्यंत हैं ॥ हे रामजी । इसप्रकार अनंत सृष्टि देखीं, सो कैसी सृष्टि हैं; जो अनहोती फुरती हैं, अरु संकल्पमात्र हैं, जब संकल्प लय हो जावे तब जगद्धम निवृत्त हो जावै, चित्तके स्पंदविषे सब जगज्जाल देखे वस्तुते क्या दृष्टि आवै, सो सुन, मैं ऊब गया, अधोगया, दशदिशा गया, परंतु मेरे तौ चेतनरूपी समुद्रके बुबुदे भासे हैं अपर कछु न भासै ॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाणप्रकरणे जगज्नालवर्णनं नाम शताधिकाशीतितमः सर्गः ॥ १८० ॥ शताधिकेकाशीतितमः सर्गः १८१, ५ बोधजगदेकताप्रतिपादनम् । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! ब्रह्म चिदाकाश अपने आपविषे स्थित है, जैसे जल अपने जलभावविषे स्थित है, अरु तिसविर्षे जो चैत्योन्मुखत्व हुआ है, तिसको मुनीश्वर चित्ताकाश कहते हैं,तिस मनविषे संकल्प विकल्प फुरणेकार अनंतकोटि ब्रह्मांड बनगये हैं, तिसका , नाम भूताकाश है, जो मनते उपजा है, इस कारणते इसका नाम भूताकाश है, सो संकल्पमात्र है, आत्माते इतर कछु नहीं ॥ श्रीराम उवाच ॥ हे भगवन् । यह जो कल्प हैं, ब्रह्माका दिन अरु रात्रि जो दिनविषे भूत उत्पन्न होते हैं, अरु रात्रिविषे प्रलय हो जाते हैं, अरु जब महाप्रलय होता है, तब भूत को नहीं रहता सब ब्रह्मसत्ताविषे लीन हो जाते हैं, सब जीवन्मुक्त हो जाते हैं, सूक्ष्म ब्रह्मही शेषरहता है, तिस सूक्ष्म ब्रह्मते बहुरि कैसे उत्पत्ति होती है, सो कृपा करकै कहौ १ ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी। जब महाप्रलय होता है,तब सब भूत नष्ट हो जाते हैं,अरु ब्रह्मसत्ता शेष रहती है, तिसको भी मानता है, तुझनेभी