पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/५९८

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अन्यजगत्प्रलयवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ३. (१४७९). नाई हो जावे, भूत नाश हो जावें, पृथ्वी भी नाश होने लगी, पर्वत कंपने लगे, भूचाल हाहाकार शब्द होने लगे, जैसे शरत्कालविषे वल्ली सूखि जाती हैं, जर्जरीभाव होती है, तैसे पृथ्वी जर्जरीभावको प्राप्त भई काहेते जो चेतनता शरीर सर्व जगत् ब्रह्मा हैं, ज्यों ज्यों संकल्परूपी चेतनता क्षीण होती जावै, त्यों त्यों पृथ्वी जर्जरीभूत होवै, जैसे किसी पुरुषका अर्धांग मरि जाता है, तब वह अंग शव जैसा हो जाती है, ऊरणा तिसविषे नहीं रहता, तैसे ब्रह्मके संकल्परूप चेतनता पृथ्वीसों निकसती जावै, इस कारणते पृथ्वी निघरी निघरी जावै, धूड उडे, नगर नष्ट होवें; इसप्रकार उपद्रव उदय हुए, काहेते कि, पृथ्वीके नाशका समय निकट आया, अरु समुद्र जो अपनी मर्यादाविषे स्थित थे, सो भी अपनी मर्यादाको त्यागत भए, जैसे कामी पुरुष मद्यपान कियेते अपनी मर्यादाको त्यागताहै, तैसे समुद्र उछले किनारे गिराय दिये, पर्वत कंदरासों निकस जावै पृथ्वीको नाश करते भये, राजा अरु नगरवासी भागते जावें, पाछे तीक्ष्ण वेगकार जल चला जावे, बड़े पर्वत गिरने लगे, अरु चक्रकी नई फिरने लगे, समुद्रके तरंगसाथ पर्वत गिरें, अरुउौं, अरु तरंग उछलकर पातालको गए, पातालका नाश होने लगा, अरु बड़े रत्नके पर्वत गिरें, तब रत्नका ऐसा चमत्कार होवै जैसा तारामैडलका होता है, इसीप्रकार बड़ा क्षोभ होने लगा, अरु तरंग उछलकार सूर्य चंद्रमाके मंडलको जावें, अरु प्रकाश भूसल होगया, वर्ड वाशि उदय भई तब वरुण कुबेर यम इनके जो वाहनथे सो भयको प्राप्त भए, जलके वेगकार पर्वत नृत्य करने लगे, मानो पर्वतोंको पंख लगे हैं, स्वर्गविषे जो कल्पतरु थे, समुद्रविषे आनि पड़े, चिंतामणि अरु सिद्ध गंधर्व तब गिरने लगे, समुद्र इकड़े हो गए, जैसे गंगा यमुना सरस्वती एकत्र होती हैं, तैसे समुद्र मिलिकार शब्द करने लगे, अरु ऐसे मच्छ निकसे, जिनके पुच्छ लगनेकरि पर्वत उडते जावें, अरु कंदराविषे जो हस्ती थे सो पुकार करें, सूर्य चंद्रमा तारागण क्षोभको प्राप्त भए समुद्रविषे गिरने लगे । हे रामजी ! इसप्रकार प्रलयके क्षोभकार जेते कछु लोकपाल थे सो सब समुद्रके सुखमें आनि पड़े,