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चिरातीतवर्णन–निर्वाणप्रकरण ६.

एक सृष्टि ऐसी हुई जो सबही उपजै, एक सृष्टि ऐसी हुई कि तिसविषे स्वामिकार्तिक न उपजा, दैत्य बढ़ि गये, दैत्योंहीका राज्य हो गया, इत्यादिक मुझको बहुत स्मरण है, केताक कहौं, सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र, इंद्र, उपेंद्र, लोकपाल इनके बहुत जन्म मुझको स्मरण आते हैं, जब हिरण्यकशिपुको हरिने मारा है, सो भी चित्त है, जो वेदको चुराय ले आया है, अरु क्षीरसमुद्र मथे हैं, सो भी बहुत स्मरणमें आते हैं, ऐसी सृष्टि भी देखी है, कि विष्णुजीका वाहन गरुड़ हुआ नहीं, अरु ब्रह्माजी हंसवाहनविना हुआ है, अरु रुद्र बैल वाहनविना हुआ है, इसते आदिलेकरि बहुत कछु देखा है, क्या क्या तुम्हारे आगे वर्णन करौं॥

इति श्रीयोगवासिष्टे निर्वाणप्रकरणे भुशुंडोपाख्याने जीवितवृत्तांतवर्णनं नामाष्टादशः सर्गः ॥१८॥



एकोनविंशतितमः सर्गः १९.

चिरातीतवर्णनम्।

भुशुण्ड उवाच॥ हे मुनीश्वर! जब बहुरि सृष्टि उत्पन्न भई तब तुम उत्पन्न हुए, भारद्वाज, पुलस्त्य, नारद, इंद्र, मरीचि, उद्दालक, त्रित, भृगु, अंगिरा, सनत्कुमार भृगेश आदिक उपजैं, बहुरि सुमेरु, मंदराचल, कैलास, हिमालय, आदिक पर्वत उपजें अत्रि, व्यासदेव, वाल्मीकि इत्यादिक यह जो अल्पकालके उपजे हैं॥ हे मुनीश्वर! तुम ब्रह्माके पुत्र हो, तुम्हारे आठ जन्म मुझको स्मरण आते हैं, कभी तुम आकाशते उपजे हौ, कबहूँ जलते उपजे हौ, कबहूँ पहाडते, कबहूं विनते, कबहूं अगिते उपजे हो॥ हे मुनीश्वर! मंदराचल पर्वत क्षीरसमुद्रविषे पायकरि जब मथने लगे तब देवता अरु दैत्य दोनों क्षोभवान् हुए, मंदराचल अधको चलने लगा, तब विष्णुजी कछुवाका रूप धर पर्वतको ठहरावतभये, अरु अमृतको निकासा सो मुझको द्वादशवार स्मरणमें आता है, अरु तीनवार हिरण्याक्ष पृथ्वीको पातालविषे