पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६११

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(१४९२) योगवासिष्ठ । है, ताते इसका नाम महाप्रलय नहीं, अरु जो कहिये वह परलोक भ्रममात्र है, तैसे यह भी भ्रांतिमात्र है, अरु जो कहिये परलोक भ्रममात्र है, इसीका नाम महाप्रलय है, तो ऐसे नहीं, काहेते जो श्रुति स्मृति पुराण सब कहेते हैं, जो महाप्रलयविष रहता कछु नहीं, आत्मसत्ताही रहती है। अरु जो कहिये परलोक भ्रांतिमात्र है इसका नाम होना क्या है, तो श्रुतिशास्त्रका कहना व्यर्थ होता है, अरु जो इनका कहना व्यर्थ होवै तौ इनके कहनेकार ब्रह्माकार वृत्ति किसकी उत्पन्न न होवै अरु जो तू कहै, जैसे अगवाला अंगको सकुचाय लेता है, तैसे स्थूलभूत संकुचिकार अपने सूक्ष्म कारणविषे जाय लीन होते हैं, इसीका नाम महाप्रलय है तो ऐसे भी नहीं, काहेते जो सूक्ष्म भूतके रहते महाप्रलय नहीं होता, अरु जो तू कहै संवेदन जो अज्ञान है, जिसविषे अहं फुरता है, तिस अज्ञानका नाम महाप्रलय हैं, तो यह भी नहीं, काहेते जो मूच्छविषे इसका अज्ञान होता है, परंतु बहुरि सृष्टि भासती है, अरु मृतक होती है, सो बड़ी मूछा है, तिसविर्ष भी बहुरि पांचभौतिक शरीर भासते हैं, अरु आगे जगत भासता है, ताते इसका नाम भी महाप्रलय नहीं, अरु जो तू कहै, जबलग यह पाँचभौतिक शरीर है, तबलग जगत है, इसका अभाव होवे तब महाप्रलय है, तो यह भी नहीं, काहेते जो शरीरको त्यागता है, अरु उसकी क्रिया नहीं होती तो पिशाच जाय होता है, इसका शरीर निरूप होता है, अरु मनुष्य तब सब हो जाते हैं, अरु क्षत्रिय ब्राह्मणकी संज्ञा नहीं रहती, ताते तू देख जो इस देहका नाम भी महाप्रलय नहीं, अरु प्रमादकारकै विपर्ययका नाम भी महाप्रलय नहीं, महाप्रलय तिसको कहते हैं, जो सर्वका अभाव हो जावै, अरु सर्वका अभाव तब होता है, जब वासना क्षय हो जातीहै, ताते वासनाक्षयका नाम ज्ञानी निर्वाण कहते हैं, जैसे जबलग निद्रा है, तबलग स्वप्नको जगत् भासता है, जब जागा तब स्वप्न जगत्का अभाव हो जाता है, तैसे जबलग वासनाहै, तबलग जगत् है, जब वासनाका क्षय हुआ, तब लगत्का अभाव होता है । हे रामजी ! वासना भी कारी नहीं, आभासमात्रहै, अरु तू जो कहे भासता