पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६१७

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(१४९८) योगवासिष्ठ । दित करलिया है, अरु दशों दिशा आकार साथ पूर्ण करी हैं, नख शिखाकी मर्यादा कछु दृष्ट न आवै ऐसा आकार बढाया, जब भुजाको हिलावै, तब जानिये कि, आकाशको मापती है, पातलपर्यंत चरण अरु आकाश जिसका शीश है, अरु उदर तिसका पृथ्वी हैं, सुमेरु आदिक पर्वत तिसका नाभिस्थान है, दृशों दिशा तिसकी भुजा हैं, मानौ प्रलयकालकी मूर्ति धारकारे स्थित भई है, अरु बड़े पर्वतकी कंदरावत् जिसकी नासिका है, लोकालोक पर्वत तिसकी दाढ हैं, अरु कण्ठविणे नदियोंकी माला है, जो जलाती हैं, अरु कंठविधे वरुण कुबेरादिक देवताके शिरकी माला हैं, पवन नासिकाके मार्गते निक• सता है, तिसकार सुमेरु आदिक पर्वत तृणोंकी नई उडै अरु ब्रह्मांडकी माला गलेविंधे हैं, हाथवषे बहुरे ब्रह्मांडरूपी भूषण हैं, कटिविषे ब्रह्माडके इँघरुतगडी हैं, जब नृत्य करे तब सब ब्रह्मांड नृत्य करैही, जैसे पवनकारि पत्र नृत्य करते हैं, तैसे सुमेरु आदिक नृत्य करें, एक एक रोमविषे ब्रह्मांड है, जैसे तारागण वायुके अधीन हैं, अरु कानविषे धर्म अधर्मरूपी मुद्रा हैं, बडे कानहैं, अरु बडा मुखहै, मानौ संपूर्ण ब्रह्मा डको भक्षण करताहे, अरु धर्म अर्थ काममोक्ष चारों,स्थान,अरु स्थान विषे चारों वेद, अरुशास्त्रके अर्थरूपी दूधनिकसताहै; अरु अपरभी सबू जगतकी मर्यादा मुझको तिसीविषे दृष्ट आवै,हँसै अरु नृत्य करणेकर कोई ब्रह्मांड नृत्य करै अस्ताचल आदिक पर्वत तृणोंकीनई नृत्यक,सब कछु विपर्यय होता हृष्ट आवै तिसके शरीरविषे आकाश अधको दृष्ट आवै, अरु पृथ्वी ऊर्ध्वको दृष्ट आवै, तारामण्डल सिद्ध देवता विद्याधर गंधर्व किन्नर दैत्यस्थावर जंगम सब उसविषे दृष्ट्वें, मानौ संपूर्ण ब्रह्मांडोंका आदर्श है, अरु भुजाके उछलनेकार चंद्रमाकी नाई नखका प्रकाशहोवै मन्दराचल उद्याचल पर्वत कानविषे भूषण दृष्ट आवै, हिमालय पर्वत बर्फके कणकेवर दृष्ट आवै ॥ हे रामजी ! इसप्रकार देवीके शरीर सुझको अनंत सृष्टि दृष्टि आवें, कहूँ इकट्ठी, कहूँ भिन्नभिन्न दृष्ट आवें, कहूँएकही जैसी चेष्टा करें, कहूँ भिन्न भिन्न चेष्टा करें, मानौ ब्रह्मांडरूपी रत्नका डब्बा है । हे रामजी ! जब संकल्पसहित देखौं, तब मुझको सृष्टि दृष्ट