पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६१८

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दैवीरुद्रोपाख्यानवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६. (१४९९) आवै, जब आत्माकी ओर देखौ, तब केवल आत्मरूपही भासै अपर कछु दृष्ट न आवै, अरु संकल्प दृष्ट करिकै संपूर्ण जगत् नृत्य करते दृष्ट आवै, ऐसे समर्थता किसकी दृष्ट न आवै, जो नृत्य न करे, सब पर्वत तृणकीनई नृत्य करते दृष्ट आवें, जगत्की उत्पत्ति स्थिति प्रलय सब तिसहीविषे दृष्ट आवै, जो कछु क्रिया है, सो तिसहीकरि होती दृष्ट अवें सिद्ध देवता गंधर्व अप्सरा विमानपर आरूढ फिरें, नक्षत्रके चक्र फिरते दृष्ट आवै, मानौ ब्रह्मांड बहुरि उदय हुएहैं, जब आत्महष्टिकरि देखौं,तब ब्रह्मस्वरूप भासै, अरु संकल्पदृष्टिकारे जगत् भासे, वह चित्तकला जो संकल्परूप है, तिसविषे सबही दृष्ट आवै ।। हे रामजी । ब्रह्मा विष्णु रुद्र इंद्र अग्नि सूर्य चंद्रमा आदि सब उसविषेद्दष्ट आवै, जैसे मच्छर वायुकार उड़ते हैं, तैसे अनंत सृष्टि उसके शरीरविषे उड़ती दृष्ट आवे, महाआश्चर्यको मैं प्राप्त भया जो वह भैरव था अरु यह भैरवी इसकी शक्ति है; दोनों सुझको दृष्ट आवै, बड़े वपुधारी हैं, यह नित्यशक्ति सर्वात्मा हैं। परमात्माकी क्रियाशक्ति सर्व विश्वको अपने आपविषे जाने, जैसे तीर्थ समुद्र सब तरंगको अपनेविषे अपना आप जानताहै,तैसे सर्व ब्रह्मांडको अपनेविषे अपना आप जानतीथी, अरु सदाशिवते भी बडे अहंकारको धारा है, मानौ सर्व ब्रह्मांडकी माला कंठविषे डारी है,अरु यमादिकसब तिसकी मर्यादा हैं हेरामजी । इसप्रकार मैं रुद्र अरु काली भवानीको देखत भया, रुद्रके शिरपर जो जटा है, सो मोरके पंखकी नई है,अरु कालीको मैं देखत भया नानाप्रकारके शृंग दमदमते आदि लेकर शब्द करती हैं, बहुरि शब्द करती भई सो श्रवण कर, दिग्वंदिग्वं तुदिग्वंपच मना वह संमेमप्रलय मिय तुय । वि पंत्री श्रीलं त्रीषलुषलुमं षनुषंसुम षषमष भ्रिगुही गुहीरांही उगु मियुयं दलुमददारी मीदीतंदती॥हे रामजी इस प्रकारके शब्द करती हुई मशाणोंविषे नृत्य करै । हे रामजी । ऐसी देवी तुम्हारे सहाय होवै, जो सर्वशक्ति परमात्मा है, सब ब्रह्मांड तिसके आश्रय क्षणविषे अंगुष्ठप्रमाण हो जावे, क्षणविषे बड़े दीर्घआकारकोधारै सब जगविषे जो क्रिया होती है, सो उसके आय होती है, कहूँ उत्पत्ति होती है, कहूँ शुद्ध पडे होते हैं, नानाप्रकारकी क्रिया तिसकी