पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६२६

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पुरुषप्रकृतिविचारवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६. (१५०७) छानकी ओर देखता है, तब अपना स्वरूप दृष्टि आता है, क्रियाशक्ति अरु आत्माविषे भेद कछु नहीं, जैसे आकाश अरु शुन्यताविषे भेद कछु नहीं, काहेते कि आकाशका ग शून्यता है, जैसे अवयवी अरु अवयवविषे भेद कछु नहीं, जैसे अग्निका रूप उष्णता है, तैसे आत्माका स्वभाव चिच्छक्ति है, अरु इसका नाम काली है, जो कृष्णरूप है, जैसे आकाश ऊर्ध्वको श्याम भासता है, वैसे यह आकाशवष्ठ है, जैसे आकाश निराकार है, तैसे काली निराकार श्यामा भासती है, आकाशकी नाई इसका वपु है ताते इसका नाम कृष्णव है, अरु काली जगतके नाशके अर्थ है, सो जब स्वरूपकी ओर आती है, तब जगवको नाश करती है ॥ हे रामजी ! स्पंदशक्ति जबलग शिवते व्यतिरेक है, तबलग जगत्को रचती है, जहां यह है तहां जगत है, जगत्ते विलक्षण नहीं रहती, जैसे जहां सूर्यकी किरणें हैं, तहां जलाभास होता है, किरविना जलाभास नहीं रहता, तैसे स्पंदशक्ति जगविना नहीं रहती, जैसे आकाशके अंग आकाश हैं, तैसे इसके अंग जगत् हैं, जैसे समुद्रविषे तरंग समुद्रूप हैं, तैसे जगत् इसका रूप है, अरु यह शक्ति चिदाकाश । है व्यतिरेक नहीं, जब यह फुरती है, तब जगदाकार हो भासती है जब शिवकी ओर आती है, तब शिवरूप हो जाती है, जगत्का भास कोऊ नहीं रहता, ताते हे रामजी ! तुम्हारी चिच्छक्ति तुम्हारी ओर आवै तब जगद्धम मिटि जावे, इस चिच्छक्तिने जगद्धम रचा है, शिव पूजा है, सो निर्मल शांतरूप है, अजर अमर है, अचैत्य चिन्मात्र है, तिसविषे कछु क्षोभ नहीं, आत्मसत्ता सदा अपने आपविषे स्थित है॥राम उवाच॥ हे भगवन् ! तुम जो कालीके अंगकी सृष्टिदेखी सो आत्माविषे सत्य है, अथवा असत्य है, सो कहौ ॥ वसिष्ठ उवाच॥ हेरामजी । यह कालीदेवी आत्माकी क्रियाशक्ति है, अर्थ यह है कि, जो ऊरणा शक्ति है, तिसकारिकै आत्माविषे सत्य है, अरु वास्तवते आत्माविषे कछु नहीं, मिथ्या है, जैसे तू मनोराज्यकारकै अपनेविषे दूसरा चितवहि वह कछु वस्तु नहीं परंतु तिस कालविषे सत्य भासता है, तैसे जेती कछु सृष्टि है सोआत्माविषे सत्य कोऊनहीं, परंतु चिच्छक्तिकरि वसती दृष्ट आती है, जैसे कछु।