पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

पुरुषप्रकृतिविचारवर्णन-निर्वाणपकरण, उत्तराई ६. (१५०९:) जैसे जबलेग पवन चलता है, तब शीत उष्ण सुगंध दुर्गध बड़ा छोटा संज्ञा होती है, अरु जब ठहरता है, तब कहा नहीं जाता कि ऐसा है, अथवाऐसा तैसे जबलग चिच्छक्ति स्पंद्रूप होती है। तबलग जगत्को रचती है, अरु प्रकृत कारणरूप कहती हैं, तिसविणे दो प्रकार शब्द होते हैं, विद्या अरु अविद्यारूप सो पड़े निकसते हैं ॥ है रामजी । जो कछु कहना होता है, सो स्पंदरूप जो चित्रलेखा है तिसविषे है, अरु जब शिवतत्त्वविषे अंकुर होतीहै, तब अद्वैतरूप हो जाती है, तहाँ किसी शब्दकी गम नहीं ।। हे रामजी ! शिव क्या है, अरु शक्ति क्या है ? सो सुन. जेते कछु जीव, सो शिवरूप हैं, अरु इनके जो चित्तका ऊरणा है सो काली कहिये, चित्तशक्ति कहिये, जबलग इच्छाकार चित्तशक्ति बाहिर फ़रती हैं, तबलग भ्रमका अंत नहीं आता, नानाप्रकारके विकाका अनुभव होता हैं, शांत नहीं होता, अजबचित्तशक्ति उलटिकरि अधिष्ठानको देखती है, तब जगद्धम निवृत्त हो जाता है, परम शांतिको प्राप्त होता है । हे रामजी ! आत्मा अरु चित् संवितुविषे. भैह कछु नहीं, जैसे वायुको स्पेनिस्पंदुविषे भेद कछु नहीं, परंतु स्पद होता हैं, तब जानता है, अरु निस्पंदहोता है, तब नहीं जानता, तैसे चित् संवित् जब ऊरता है, तब नहीं जानता, तैसे चिव संवित् जब फुरता है, तब जानता है, अरु नहीं हुरता तब नहीं जानता, अरु जानना न जानना दोनों नहीं रहता ॥ हे रामजी ! जबलग इच्छाशक्ति शिवकी ओर नहीं देखती बिलग नानाप्रकारकी नृत्य करती है, अर्थ यह कि जगत्को रचती है, अरु जब शिवकी ओर देखती है, तब इसको नृत्यविरस हो जाता हैं, अरु सब अंग इसके सूक्ष्म हो जाते हैं। हे रामजी ! इस कालीका जो आकार था, सो अप्रमाण प्रमाणविषे आता न था, अरु शिवकी ओर देखनेते सूक्ष्म हो गया, प्रथम पर्वतसमान भया, बहुरि निकट आई, तब सके समान भया, बहुरि वृक्षके समान भया, बहुरि निकट आई, तब सूक्ष्म आकार भया, जब शिक्के साथ मिली तब शिवरूप हो गई, इसका जो विलास है, सो शून्य हो जाता है अरु पुरम शांत शिवपदको प्राप्त होती हैं ॥ श्रीराम उवाच ॥ हे मुनीश्वर !