पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६३२

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अनन्तजगद्वर्णन-निर्वाणकरण, उत्तराई ६. (१५३३) देवको दैत्य जीतते हैं, कहूँ दैत्यको देवता जीतते हैं, कहूँ देव अरु दैत्यकी परस्पर प्रीति है, कहूँ बल अरु इंद्रका, रुद्र वृत्रासुरका युद्ध पडा होता है, कहूँ मधुकैटभ दैत्य ब्रह्माकी कन्याते उत्पन्न होता है, कहूँ सदा प्रसन्नता रहती है, अरु तीनों कालको जानते हैं, कहूँ सदा शोकवान् नहीं रहता है, कहूँ सतयुगका समय है, दान पुण्य तपश्चर्या करते हैं, कहूँ कलियुगका समय है, प्राणी पापविषे विचरते हैं, कहूँ अर्ध युग बीता है, कहूँ रामजी अरु रावणका युद्ध होता है, रावणको रामने मदन किया है, कहूँ रामजीको रावणने मर्दन किया है, कहूँ सुमेरु पर्वत तले है, पृथ्वी ऊपर हैं, कहूँ शेष नागके ऊपर पृथ्वी है, भूचालकारै भ्रमती है, कहूँ प्रलयकालका जल चढा है, अरु एक बालक वटके वृक्ष ऊपर बैठा अपने अंगुष्टको चूसता है, सो विष्णु भगवान हैं, कहूँ ब्रह्माके कल्पकी रात्रि है, महाशून्य अंधकार है, कहूँ कौरवपांडवकी सहायता कृष्ण करता है, कहूँ महाभारतको युद्ध होता है, दोनों ओरते अक्षौहणी सेना निकसै है; अरु कृष्णपाण्डवकी सहायता करता है,कहूँ एक सृष्टि नाश होती है; उसी सृष्टिविषे उसी जैसी अपर उत्पन्न होती है। उसी जैसा कर्म उसी जैसे कुल जाति गोत्र होते हैं, कहूँ उसते अर्धभाग मिलता है, कहूँ चतुर्थ भाग उस जैसा मिलता है, कहें विलक्षण भाग होता है। हे रामजी। इसप्रकार मैं अनंत सृष्टि आत्मआदर्शविर्षे प्रतिबिंबित होती देखी हैं, अरु जब मैं आत्मदृष्टिकर देखौं तब सब चिदाकाशही भासै, जब संकल्पदृष्टिकार देखौं, तब जगत् भासै कहूँ ऐसी सृष्टि देखी, जहां दशरथका पुत्र राम अरु रावणके मारनेको समर्थ हुआ है, तुम्हारा रूप बडा तपस्वी रहता है, अरु सदा प्रसन्न है मन जिसका, ऐसी अनंत सृष्टि देखी ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! मैं आगे भी हुआ हौं, अरुऐसाही हुआ हौं अथवा किसीअपर प्रकार हुआ हौं, सो कहौ ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी। कई उसी जैसे होते हैं, कई अर्थ लक्षण होते हैं, कई चतुर्थ भाग लक्षण होते हैं, जैसे अन्नका बीज उसी जैसा होता है, कोङ उसते विशेष भी होता है, तैसे यह पदार्थ सब पड़े परिणाम होते हैं ॥ हे रामजी ! तभी आगे होवैगा,