पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

योगवासिष्ठ । ब्रह्माने मनोराज्यकारकै आगे जगत् उत्पन्न किया है, ब्रह्माही जगत्रूप होकरि स्थित भया है, सो ब्रह्माविषे ब्रह्माही स्थित है ॥ हेरामजी ! ब्रह्माका शरीर अंतवाहक है, केवल आकाशरूप है, तिसके हृढ संकल्प कार अधिभूत जगत् दृढ भया हैं, तिसी मनते अपर मन हुआ है ॥ हे रामजी । जैसे ब्रह्माका शरीर अंतवाहक है, तैसे सबका शरीर अंतवाहक हैं, परंतु संकल्पकी दृढताकारकै अधिभूत भासता है, सब मनरूप है; परंतु दीर्घकालका स्वप्न सो जाग्रत होकर स्थित भया,तिसकारिकैदृढ भासता है, जिनको संकल्प ब्रह्मशरीरविषे अहंकार है, तिन अज्ञानीको जगत् अधिभूत भासता है; अरु जो प्रबोधरूप हैं, तिनको सब जगत् संकल्परूप है, अरु वास्तवते कहै, तौ उपजा कछु नहीं, न तु है, न मैं हौं, न ब्रह्मा हैं, न जगत् है, सर्वही.ब्रह्मरूप है, जैसे आकाश अरुशुन्यताविषे भेद कछु नहीं, जैसे अग्नि अरु उष्णताविषे भेद कछु नहीं, जैसे वायु अरु स्पंदविषे भेद कछु नहीं, तैसे ब्रह्म अरु जगविषे भेद कछु। नहीं, ब्रह्म शब्द अरु जगत् दोनों अज हैं, न ब्रह्मही उपजा है, न जगत् उपजा है, दोनों ब्रह्मरूप हैं, जो ब्रह्मते इतर भासता है, सो भ्रातिमात्र है, हे रामजी । पंचभूत अरु छठा मन इनका नाम जगत् है, जबलग यह भूत उसविषे दृष्टि आते हैं, तबलग भ्रांति है, जब इनते रहित केवल चेतन भासे, तब इसका नाम परमपद है । हे रामजी ! जब आत्मपविषे जागैगा, तब पंचभूत भी आत्माते इतर भासँगे, सबका अधिष्ठान चेतनसत्ता है, जबलग आत्माको प्रमाद है, तबलग संसारभ्रम न मिटैगा, अरु सब जगत् निराकार संकल्पमात्र है, परंतु संकल्पकी दृढताकरिकै आकाशविषे स्थूल भूत दृष्टि आते हैं, ज्ञानकालविषे और अज्ञानकालविष भी जगत् उपजा नहीं, परंतु अज्ञानीके हृदयविषे दृढ भासताहै। जैसे किसीने मनोराज्यकारकैनगर रचा होवे, सो उसीके हृदयविषे है, अपर कहूं नहीं भासता, तैसे जबलग अज्ञान निद्राविषे सोया है, तबलग जगत् भासता है, जब जागैगा तब आकाशरूप देखेगा ॥ हे रामजी । अपना संकल्प आपको नहीं बांधता, जबलग स्वरूपका प्रमाद नहीं भया, तबलग ब्रह्माका संकल्प ब्रह्माको नहीं बंधन करता, स्वरूपकी