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भुशुण्डोपाख्यानेप्राणापानसमाधिवर्णन–निर्वाणप्रकरण ६.

अवस्थाके देशकालको विचारै तब बहुरि शोकको नहीं प्राप्त होता, सब भ्रम नाश हो जाता है, अरु द्वादश अंगुलपर्यंत जो आकाश है, तिसते अपानरूपी चंद्रमा उपजिकरि हृदयविषे प्राणरूपी सूर्यमें लीन होता है, अरु सूर्यभावको जबलग नहीं प्राप्त होता, तिसके मध्यभाव अवस्थाविषे जिसका मन लगा है, सो परमपदको प्राप्त होता है, हृदयविषे चंद्रमा अरु सूर्यके अस्तभाव अरु उदयभावका यह ज्ञाता हुआ, अरु इसका आधारभूत जो आत्मा है तिसको जाना, तब मन बहुरि नहीं उपजता॥ हे मुनीश्वर! प्राण अपानरूपी जो हृदयआकाशविषे सूर्य चंद्रमा उदय अरु अस्त होते हैं, तिनके प्रकाशकरि हृदयविषे भास्कर देव है, तिसको जो देखता है सोई देखता है, अरु बाहर जो सूर्य प्रकाशता है, कबहूं अंधकार होता है, तव प्रकाशके उदय हुए अरु तमके क्षीण हुये कछु सिद्धता नहीं होती. परंतु जब हृदयका तम दूर होता है, तब परम सिद्धताको प्राप्त होता है, बाहर के तम नष्ट हुए लोकको प्रकाश होता है, अरु हृदयके तम नष्ट हुए आत्मप्रकाश उदय होता है, अरु अज्ञान अंधकारका अभाव हो जाता है, परमपदको जानिकरि मुक्त होता है, प्राण अपानकी युक्ति जानते तम नष्ट हो जाता है,॥ हे मुनीश्वर! प्राण अपानरूपी जो चंद्रमा अरु सूर्य है, सो यत्नविना उदय अरु अस्त होते हैं, जव प्राणरूपी सूर्य हृदयकोटते उपजिकरि बाहरको गमन करता है, तब उसी क्षण अपानरूपी चंद्रमाविषे जाय लीन होता है, अपानरूपी चंद्रमा उदय होजाता है, अरु जब अपानरूपीचंद्रमा हृदयकोटविषे प्राणवायुरूपी सूर्यविषे आनि स्थित होता है, तब उसी क्षणविषे प्राणरूपी सूर्य उदय होता है, प्राणके अस्त हुए अपान उदय होता है, अरु अपानके अस्त हुए प्राण उदय होता है, जैसे छायाके अस्त हुए धूप उदय होता है, अरु धूपके अस्त हुए छाया उदय होती है, तैसे प्राण अपानकी गति है॥ हे मुनीश्वर! जब हृदयकोटते प्राण उदय होता है, तब प्राणका रेचक होने लगता है, अरु अपानका पूरक होने लगता है, जब जानिकरि अपानविषे स्थित हुआ, तब अपानका कुंभक होता है, तिस कुंभकविषे जब यह स्थित होता है, तब बहुरि तीन तापकरि नहीं तपता, जब अपानका रेचक होता है, तब प्राणका