पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६६१

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(१५४३) योगवासिष्ठ । चलायमान नहीं होता, काहेते कि सर्व ब्रह्मस्वरूप जानता हैं, जैसे तृणकार पर्वत चलायमान नहीं होता तैसे वह बँडै दुःखकार भी चलायमान नहीं होता, दुःख तब होता है,जब आत्माते इतर कछु भासता है, सो उसको आत्माते इतर कछु नहीं भासता ॥ हे रामजी। यह सब जगत आत्मअनुभवरूप है, काहेते जो परमात्माका स्वरूप है, स्वप्नविषे अनुभवते इतर कछु वस्तु नहीं होती, इसीकारणते सब जगत् अनुभवरूप है, अरु जो इतर भासता है, सो भ्रांतिमात्र है, यह जगत् जो नानाप्रकारका भासता है, सो आत्माविषे अव्यक्तरूप है, भ्रमकारकै प्रगट भासता है, जैसे आकाशविषे नीलता भ्रमकार सिद्ध है, तैसे आत्माविषे जगत् भ्रमकार सिद्ध है, वास्तवते ब्रह्मते इतर कछु नहीं, आत्मसत्ताही जगतरूप होकार भासती है, तिसविषे जैसाजैसा निश्चय होता है, तैसाही अधिष्ठानरूप भासता है, अरु जिनके कारण कारकै सृष्टिका अधिष्ठान हृढ हो रहा है, तिनको तैसाही भासता है, जिनको परमाणुते सृष्टि उत्पत्ति निश्चय भई है, तिनको तैसेही सत्य भासती है, माध्यमिक सत्य असत्यके मध्य वस्तुको मानते हैं, एक म्लेच्छ हैं चाकी, सो चारौं तत्त्वते सृष्टिको उत्पत्ति मानते हैं, बौद्ध कहते हैं जो कछु वस्तु है सो बोध है, इसके अभाव हुए शून्यही रहता हैं, एक अनेक ब्राह्मण हस्ती गौ थान घोडा सूर्यादिकविषे भिन्न भिन्न प्रतीति होरही है,जो ज्ञानवान ब्राह्मण , हैं सो सर्वविषे एक ब्रह्मसत्ताअनुस्यूत देखते हैं। हे रामजी वस्तु तो एक है, तिसविषे जैसा निश्चय जिसका भया है, तैसाही भासता है, जैसे चिंतामणि अरु कल्पतरुर्विषे जैसी भावना करीजाती है, तैसा रूप हो भासता है ॥ हे रामजी ! बुद्धिमान्कार निर्णय किया है, कि सारभूत आत्मसत्ता है, जब तिसविषे दृढ अभ्यास करेगा, तब आत्मसत्ताही भासैगी, तिस निश्चयकार चलायमान न होवैगा ॥ राम उवाच ॥हे भगवन् । बुद्धिवान् कौन हैं, जगविखे पातालविर्ष कौन हैं, भूतलविषे कौन हैं, स्वर्गविषे कौन हैं, जिनके पूर्वापरके विचारकारे पावरका साक्षात्कार हुआ है, अरु आत्मस्वरूपका कैसा निश्चय करते हैं ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी! जेता कछु जगत है सो इंद्रियोंके विषयकी तृष्णाकारि जलते हैं,