पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६८६

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सर्वपदार्थाभाववर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६. (१५६७) आत्मपद भी तब प्राप्त होवैगा, जो इढ अभ्यास करैगा अभ्यास विना कहनेमात्रकार प्राप्त नहीं होता । हे रामजी ! इस मनके दो प्रवाह हैं, एक जगत्का कारण हैं, एक स्वरूपकी प्राप्तिका कारण हैं, जो असत्य शास्त्र हैं, जिनविषे आत्मज्ञान प्रत्यक्ष नहीं कहा तिनको त्याग, यह जो महारामायण है, मोक्ष उपाय, सो चार वेद, षट् शास्त्र, सर्व इतिहास पुराणका सिद्धांत मैंने कहा है, कि इसके समान अपर कोऊ न कहेगा, न किसीने कहा हैं, ऐसा जो शास्त्र है, इसके विचारविषे मनको लगावै तब शीघ्रही आत्मपदको प्राप्त होगा । हे रामजी । आत्मज्ञान वर शापकी नाईं नहीं, जो कहनेमात्रते सिद्ध प्राप्त होवै, इसकी प्राप्ति तब होगी, जब वारंवार विचार कारकै दृढ अभ्यास करैगा, जब भावना होवैगी, तब मुक्तिपद प्राप्त होवैगा ऐसा कल्याण पिता अरु माता नहीं करते, अरु मित्र भी ऐसा कल्याण न करेंगे, तीर्थ आदिक सुकृत भी न करेंगे, जैसा कल्याण वारंवार विचारणेते मेरा उपदेश करेगा, ताते अपर सब उपायको त्यागिकार इसीका विचार करु, तब भ्रांति सब मिटि जावैगी, अरु शीत्रही आत्मपदकी प्राप्ति होवैगी ।। हे रामजी । अज्ञातरूपी विधूचिका रोग है, तिलकार जीव पडे जलते हैं, जो मेरे शास्त्रको विचारैगा, तिसका रोग नष्ट हो जावैगा, अरु ईश्वरकी महाभाया है, जो मिथ्याश्चमकार दुःखी होते हैं, जो अपनादुःख नाश करणा होवै, तो मेरा शास्त्र विचारे, जेते कछु सुंदर पदार्थ दृष्ट आते हैं सो मिथ्या हैं, तिनके निमित्त यत्न करना परम आपदा है, यह कैसे पदार्थ हैं, आपातरमणीय हैं, जो देखनेमात्र सुन्दर हैं, अरु अंतरते शून्य हैं, इनकी प्राप्तिविषे मूर्ख आनंद मानते हैं ॥ हे रामजी यह पदार्थ तबलग सुन्दर भासते हैं, जबलग इसको मृत्यु नहीं आया, जब मृत्यु आवैगा, तब सब क्रिया रह जायँगी, इनके निमित्त जो बड़े यत्न करते हैं, सो सूखहँजिस कालविषे मृत्यु आता है, तिसी काल इसको कछु अनि प्राप्त होताहै,चंदनका लेप इसको कारये तो भी शीतल नहीं होता, अरु जिस व्यके निमित्त बड़ा यत्न करता है, अरु प्राणको त्यागता है, युद्ध करताहै धनके निमित्त, सो धन स्थिर नहीं रहता, धनका अरु प्राणीका वियोग हो