पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६८९

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योगवासिष्ठ । है, तिसते तैसा कार्य उपजता है, सो आत्मा निराकार अरु जगत् साकार हैं, तो निराकार साकारका कारण कैसे होवे, जैसे वटका बीज साकार होता है, तिसका कार्य वट भी साकार होता है, अरु साकारते निराकार कार्य तौ नहीं होता, तैसे निराकारते साकार कार्य भी नहीं होता, ताते इस जगत्का कारण आत्मा नहीं, न समवायिकरण हैं, न निमित्तकारण है, निमित्तकारण तब होता है, जब कछु द्वितीय वस्तु होती है, जैसे मृत्तिकाके कुलाल घट बनाता है, सो आत्मा अद्वैत हैं, निमित्तकारण कैसे होवे, अरु समवायिकारण भी तब होता है, जब साकार वस्तु होती है, जैसे मृत्तिका परिणामिके घट होता है, सो आत्मा निराकार अपरिणामी है, जगत्का कारण कैसे होवै, दोनों कारणते जो रहित भासै सो जानिये कि, भ्रांतिमात्र है, जैसे स्वप्नविधे नानाप्रकारके आकार भासते हैं, सो कारणविना भासते हैं, ताते भ्रांतिमात्र हैं, तैसे यह जगत भी कारणविना भ्रांतिमात्र भासता है, आत्माविषे जगत् कदाचित् नहीं हुआ, जैसे प्रकाशविषे तम नहीं होता, तैसे आत्माविषे जगत नहीं, अरु जो तू कहै भासता क्यों हैं, तौ उसीका किंचन भासता हैं, सो वहीरूप है, जैसे चलती हैं तो भी वायु है, अरु ठहरती है तो भी वायु है, चलने अरु ठहरनेविषे भेद कछु नहीं, जैसे आकाश अरु शून्यताविषे भेद कछु नहीं, तैसे आत्मा अरु जगतविष भेद कछु नहीं. वही आत्मसत्ता फुरणेकार जगरूप हो भासती है, जैसे जल अरु तरंगविषे भेद कछु नहीं, तैसे आत्मा अरु जगदविषे भेद कछु नहीं, अपर कछु द्वैत वस्तु है नहीं, जो कहते हैं, जगत् कमकार होता है, सो असत्य है, कर्म भी बुद्धिकार होते हैं, सो आत्माविषे बुद्धिही नहीं, तौ कम कैसे होवें, जो कर्मही नहीं, तौ जगत् कैसे होवै, जैसे शशेके शृंगके धनुषसाथ बाण चलाना असत्य है, तैसे कर्मकार जगत्का होना असत्य है, अरु एक कहते हैं, सूक्ष्म परमाणुते जगत हो जाता है, सो भी असव है, काहेते कि जो सूक्ष्म परणाणु परिणामीकारि जगतरूप हुए होते तौ बुद्धिरूप जगत् न भासता, यह तौ बुद्धिरूप क्रिया होती दृष्ट आती है, जो परमाणुते जगत् होता तौ