पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६९४

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जागृत्वमैकताप्रतिपादनवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६.(१५७५) जैसे होते हैं, जैसे दो सूर्य होवें, तिनविषे भेद कछु नहीं होता, तैसे जागृत अरु स्वप्नविषे भेद कछु नहीं जानना ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् । स्वप्नकी प्रतिभा अल्पमात्र भासती है,शीग्रही जागकर कहता है, एक भ्रममात्र थी; अरु जाग्रत् दृढ होकार भासती है, तुम दोनोंको समान कैसे कहते हौ १ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी। जिस प्रतिभाका प्रत्यक्ष अनुभव होता है,सो जाग्रत् कहाती है, अरु जिसका प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता, चित्तविष स्मृति होती है, सो स्वप्न है, सो जाग्रतअरु स्वम दो प्रकारका है, जिसका प्रत्यक्ष अनुभव होता है, सो जाग्रत है, तिसविषे जब सोय गया, तब स्वप्न आया, तिस स्वप्नविषे जगत् भास आया, सो जहाँ जगत् भास आया वही तिसको जाग्रत हो गई, अरु जहाँते सोया था, वह स्वप्न हो गया, अरु यहां जो स्वप्न भासा, तिसको जाग्रत् जान चेष्टा करने लगा भाई जन लोकसाथ, जब वहाँते मृतक हो गया, बहुरि उसविषे आया, आयकर पिछलीको स्वप्न जानने लगा, तो चित्तके भ्रमकरिके स्वप्नको जाग्रत् देखत भया था, अरु जाग्रतको स्वप्न देखत भया था॥ हे रामजी ! सो क्या भया, जैसे किसीको स्वप्न आया, तिसविषे अपनी चेष्टा व्यवहार करने लगा, बहुरि तिसविषे स्वप्न हुआ, तिस स्वप्नांतरते जब जागा, बहार उस स्वप्नविषे आया, आयकर उसको स्वप्न जानने लगा, अरु उस स्वप्नको जाग्रत् जानने लगा ॥ हे रामजी । जैसे वह स्वप्नांतरते जागकर तिसको स्वप्न कहता है, अरु स्वप्नको जाग्रत कहता है, तैसे इहां जाग्रत् स्वरूप है, अरु आगे जो होता है, सो स्वप्नांतर है, एक अपर प्रकार है, जो इस जाग्रतविषे मृतक हुआ शरीर छूट गया, तब परलोकको देखता है, सो परलोक जाग्रत हो गया, अरु इस जाग्रतको स्वप्न जानने लगा, जैसे स्वपते जागा स्वको भ्रम कहता है, तैसे इस जायको परलोकविषे भ्रम जानता है, बहुरि परलोकविषे स्वप्न आया, तब परलोककी जाग्रत् स्वप्नवत हो गई, अरु जो स्वप्नविषे सृष्टि भासी, तिसको जाग्रत् जानत भया, बहुरि वहांते मृतक होकर यहाँ आया, तब यह जाग्रत हो गई, परलोक स्वप्न हो गया, ताते हे रामजी । स्वम् अरु