पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७०५

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योगवासिष्ठ । भये । हे रामजी ! इसप्रकार बडे तेजसंयुक्त चारों राजा विपश्चित प्रगट भये,रथ हस्ती घोडा प्यादा चारों प्रकारकी सेना भी प्रगट भई,अरु चारों ओरते वहीं शत्रु आनि युद्ध करनेलगे बडा युद्ध होता है, नगर जलाते हैं, अरु हाहाकार शब्द होता है, शूरवीर युद्धविष प्राणको त्यागते हैं, अरु उछलकर लडते हैं, बडे रुधिरके प्रवाह चलते हैं, खङ्ग बरछीकी वर्षा होती हैं, अग्निका अट्ट अट्ट शब्द होता है, मानो समयविना प्रय आने लगी हैं, बडा युद्ध होता है, जो शूरमे हैं, सो युद्धविषे मरणेको । जीवना मानते हैं, अरु जीवणेको मरण जानते हैं, ऐसे निश्चयको धारिकै युद्ध करते हैं, अरु कायर हैं सो भाग भाग जाते हैं, जैसे गरुडके भयकार सर्प भागि जाते हैं, अरु शूरमे सन्मुख होकर लडते हैं, इसप्रकार बडा युद्ध होने लगा, रुधिरकी नदियां चलीं, तिनविषे इस्ती घोडा रथ शुरमे बहते जावें, अरु बडे बडे वृक्ष नगर गिरते बहते जावें, अरु मांसभक्षणके निमित्त योगिनी आनि स्थित भई हैं, जो जो युद्धविषे मृतक होवें, तिनको अप्सरा विद्याधरी विमानके ऊपर चढायकार स्वर्गको ले जावें ॥ हे रामजी ! इसप्रकार जब युद्ध हुआ, तब राजा विपश्चितकी सेना सब शून्य हो गई, अर्थात् थोडी हो गई, अरु राजाने सुना कि सेना बहुत मारी गई है, तब राजाने असवार होकर आय देखा कि सेना थोडी हो गई है, एक एक राजा एक एक ओरको गया, चारों राजा चारों ओरको गये, अरु विचार किया कि, यह महागंभीर सेनारूपी समुद्र है, तिसविषे शस्त्ररूपी जल है, धारारूपी तरंग हैं, अरु मच्छरूपी शूरमे हैं, ऐसा जो समुद्र है, तिसको अगस्त्य होकार मैं पान करौं, ऐसे विचार कर उद्यम किया, काहेते कि विशेष सेना देखी, एक तौ आगेहीको चले आवै, अरु एक शूरमे तेजकर सेनाको जलावें, अरु तीसरी बहुत हैं ऐसी तीन प्रकारकी सेनाके तीन उपाय किये, प्रथम तौ वायव्यास्त्र हाथ लिया, परमात्मा ईश्वरको नमस्कार किया अरु मंत्र पढिकै पवनका अस्त्र चलाया तिसकार अंधेरी आई, तब जेती सेना आगे चली आती थी, सो सब पाछे, उलट उड़ने लगी, बहुरि मेघरूपी अस्त्र चलाया, तब वर्षा होने लगी,