पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(९५२)
योगवासिष्ठ।

है, भुशुण्ड नाम काक त्रिलोकीरूपी कमलका भँवरा है, तिसने कहा॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाणप्रकरणे भुशुण्डोपाख्याने चिरंजीविहेतुकथनं नाम द्वाविंशतितमः सर्गः ॥२२॥



त्रयोविंशतितमः सर्गः २३.

भुशुण्डोपाख्यानसमाप्तिवर्णनम्।

भुशुण्ड उवाच॥ हे मुनीश्वर! जैसा मैं हौं, तैसा तुम्हारे आगे कहा है, सो तुम्हारी आज्ञाके सिद्धि अर्थ कहा है, नहीं तौ गुरुके आगे कहना भी ढिठाई है, तुम ज्ञानके पारगामी हो॥ वसिष्ठ उवाच॥हे भगवन्! आश्चर्य है, आश्चर्यते आश्चर्य है, तुमने श्रवणका भूषण कहा है, आत्म उदितरूप वचन जो तुमने कहे हैं, सो परम विस्मयके कारण हैं॥ हे भगवन्! तुम धन्य हौ! तुम महात्मा पुरुष हो; चिरंजीविके मध्य तुम मुझको साक्षात् दूसरे ब्रह्मा भासते हो, आज हम भी धन्य हैं जो तुम्हारे सरिखे महापुरुषके मुखते आत्मउदित इसप्रकार सुना है, जैसे मैं पूँछा तैसे तुमने कहा॥ हे साधो! मैं सब भूमिलोक देखा है, अरु दिशागण देखे हैं, अकाशलोक देखा है, पाताललोक देखा है, त्रिलोकी देखी है, तुमसारखा कोऊ विरला है, जैसे बांस बहुत हैं, परंतु मोतीवाला कोई विरला होता है, तैसे तुमसारखे विरले हैं॥ हे साधो! आज हम पुण्यरूप हुए हैं, हमारी देह आज पवित्र हुईहै जो तुमसरिखे मुक्त आत्माका दर्शन हुआ है॥ हे रामजी! इसप्रकार कहकर बहुरि कहा॥ हे साधो! अब हम जाते हैं, हमारे मध्याह्नका समय हुआ है, सप्तर्षिके मध्य जाते हैं, जब मैं ऐसे कहा तब कल्पलताते उठ खड़ा हुआ, अरु संकल्पके हाथ करिकै उसने स्वर्णका पात्र रचिकरि मोती रत्नसे भरकर, मुझको अर्ध्य पाद्य किया, पूजन करत भया, जैसे त्रिनेत्र सदाशिवकी पूजा करता है, तैसे चरणते लेकरि मस्तकपर्यंत मेरा पूजन किया, अरु बहुत नम्र होकरि प्रणाम किया, अरु मैं उसको प्रणाम किया, इसप्रकार परस्पर नमस्कार करिकै मैं