पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७२०

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विपश्चितोपाख्यानवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६. (१६०१) ऊंचा है, तहाँ ताराका नक्षत्रचक्र फिरता है, तिसको भी लंधि गये तिसके आगे एक शून्य नक्षत्र था, सो कैसा था, जो महाशून्य जैसा, जहाँ पृथ्वी जल आदिक तत्त्व कोऊ नहीं, एक शून्य आकाश है, न को स्थावर पदार्थ है, न कोऊ जंगम पदार्थ है, न कोऊ उपजै न कोऊ मिटै तिसुको देखत भये, इसीप्रकार संपूर्ण भूगोलको देखत भये ॥ राम् उवाच ॥ हे भगवन् । भूगोल क्या है अरु किसके आश्रय हैं, अरु तिसके ऊपर क्या है ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! जैसे गेंद होता है, तैसे भूगोल हैं, अरु संकल्पके आश्रय है, सर्व ओर तिसके आकाश है, सूर्य चंद्रमा नक्षत्र सहित चक्र फिरता है । हे रामजी 1 यह बुद्धिकरिके बना नहीं, संकल्पकारकै बना है, जो वस्तु बुद्धिकारकै बनी होती है सो क्रमकार स्थित होती हैं, अरु यह तो विपर्ययरूपकार स्थित है, पृथ्वीके चौफेर दशगुण जल है, तिसते परे दशगुण अग्नि है, तिसते परे दशगुण वायु है, तिसते परे ब्रह्मांडवपर है, सो खपर एक अधको एक ऊर्ध्वको गया है, तिसके मध्यविषे जो पोल है सो आकाश है, वह वज्रसारकी नाँई है, अनंतकोटि योजनाको विस्तार है, तिस ब्रह्मांडका तिसविषे भूगोल है, तिसते उत्तरदिशा सुमेरु पर्वत है, पश्चिमदिशा लोकालोक पर्वत है, ऊपर नक्षत्रोंका चक्र फिरता है, जहां वह आता है, तहा प्रकाश होता है, जहाँ नहीं होता, तहाँ तमरूप भासता है, सो संकल्प रचना है, जैसे बालक संकल्पकार पत्थरका वटा रचै तैसे चेतनरूपी बालकने यह संकल्परूपी भूगोल रचा है । हे रामजी ! जैसे जैसे उस समय तिसविषे निश्चय हुआ है, तैसेही स्थित भया है, जहाँ पृथ्वी स्थित रही है, तहाँ स्थित हैं, जहां खातरची है, तहां खातही है, अरु है क्या जैसे स्वमपिषे अविद्यमान प्रतिभा होती है, तैसै भूगोल है॥ हे रामजी! जिनको ऐसे भासता है, जो सुमेरुविषे देवता हैं, उत्तर दिशा अरु अपर दिशा मनुष्यते आदि लेकार जीव रहते हैं, ऐसे जिनको ज्ञान है, सो पंडित हैं, तो भी मूर्ख हैं, यह तौ भ्रममात्र है, बना कछु नहीं, जो हमते आदि लेकर तत्त्ववेत्ता हैं, जिनको ज्ञाननेत्रकारि आत्मसत्ता ज्योंकी त्यों भासती है, जो मनसहित घटू इंद्रियोंकार अज्ञानी देखते हैं, तिनको जगत् भासता है