पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७३८

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स्वयंमाहात्म्यवृत्तान्तवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६. ( १६१९) गये, सूर्यके मंडलको गये, कई गण अंगके अंतपावनेको उडे,सो मार्गहीमें मरगये परंतु अंत कहूं न पाया, अरु देवी उस शवकी ओर देखे, तिस देखनेकर नेत्रते अग्नि निकसै, तिस अग्निकार माँस परिपक्व होवे, अरु गण भोजन करें, अरु पकनेके समय जो शरीरते कहूं रक्तकी बूंद निकसै, तिसकर मंदराचल अरु हिमाचल पर्वत लाल हो गये, मानौ पर्वतने लाल वस्त्र पहिरे हैं, अरु रक्तकी नदियाँ बहै हैं; बडे जो सुंदर स्थान थे, अरु दिशा सब भयानक होत भई, अरु पृथ्वीऊपर जीव सब नष्ट हो गये, पहाडकी कंदराविषे जाय देव रहे सो बचि गये, अपर सब नष्ट हो गये ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! तुम कहते हौ, उसके नीचे आय प्राणी सब नष्ट हो गये, अरु अंग उसके ऐसे कहते हो, जो ब्रह्मांडको भी लंघि गये, बहुरि कहते हौ देवता बचि रहे सो क्या कारण है ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! जो उसके शरीर अरु अंगके नीचे आये सो नष्ट हो गये, अरु मुख अरु श्रीवाविषे कछु भेद ही तिसविषे जो पोल है, अरु गोदी अरु टंगके नीचे जो कछु पोल हैं, अरु सुमेरु मैदराचल उदयाचल अस्ताचल पर्वतविषे कछु पुलाव है, तिनकी कंदरा विषे बैठे देवता बचि गये, अंगके छिद्रविषे रहे हैं, इसकार बचि रहे हैं, अरु कहने लगे, बडा कष्ट है, हमारे बैठनेके स्थान कई नष्ट हो गये हैं, वृक्ष कहां गये, बर्फका पर्वत हमारा कहां गया, इनकी सुंदरता कहाँ गई, वन अरु बगीचे कहां गये, चंदनके वृक्ष कहां गये, अरु जनके समूह कहां गये, जो हमको यज्ञकार पूजते थे, वह ऊंचे वृक्ष कहां गये, कि ब्रह्मलोकपर्यंत जिनके फूल अरु टास जाते थे, अरु वह क्षीरसमुद्र कहां गया, जिसके मथने कार बडा शब्द उदय होता था, अरु तिसके पुत्र जो रत्न कल्पतरु अरु चंद्रमा थे सो कहां गये, अरु जंबूद्वीप कहा गया, जिस जंबूके फलकी नदी चलाई थी, अरु स्वर्णवत् जलके चक्र उठते थे, सो नहीं हैं कहां गई, अरु गन्नेके रसका समुद्र कहां गया, हा कष्ट ! हा कष्ट आपडा है, खंडके पर्वत अरु मिसरीके पर्वत, अप्सराके विचरणेके स्थान कहां गये, पृथ्वी कहां गई, यह नंदनवनके स्थान कहां गये, जहां हम अप्सरासाथ विलास करते थे, तिन विषयका अभाव नहीं हुआ, मानौ