पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७४१

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योगवासिष्ठ । भुताकाशरूप हो गई, तब आकाशविचे तिसका वायुसाथ संयोग हुआ तब उस ऋषि मौनीके शापकी वासना आनि उदय भई, जैसे पृथ्वीविषे समय पायकार बीजते अंकुर उत्पन्न होता है, जैसे पंच तन्मात्रा उदय भई, अरु मच्छरका शरीर अपना भासि अया, अज्ञान कारकै मच्छर हुआ, जिस मच्छरकी दो अथवा तीन दिन आयुर्बल होती है, तिसका शरीर पाया ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! जीव जो जन्म पाते हैं, सो जन्मते जन्मांतरको चले आते हैं, अथवा ब्रह्मते उपजे होते हैं, यह कहौ। ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी! कई जन्मते जन्मांतर चले आते हैं, अरु कई ब्रह्माते उपजते होते हैं, जिनको पूर्ववासनाका संसरना होता है सो वासनाके अनुसार शरीरको धारते हैं, सो जन्मते जन्मतिरको चले आते हैं, अरु जिनको संस्कार विना भूत भासि आते हैं, सो ब्रह्माते उत्पन्न होते हैं ॥ हे रामजी । आदि सब जीवसंस्काररूपी जो कारण है, तिसविना उत्पन्न हुए हैं, अरु पाछेते जन्मतिर इनको होता है, जिसको संस्कारविना भूत भासै सो जानिये ब्रह्माते उपजा है, अरु जिसको संस्कारकारि सृष्टि भासै सो जानिये इसके जन्मान्तर हैं, जो ये दो प्रकार भूतकी उत्पत्ति मैं तुझको कही है, अब बहुरि उस मच्छरका क्रम सुन ॥ हे रामजी ! जब वह मच्छरके जन्मको प्राप्त हुआ, तब कमलनिया अरु हरे घास तृण पत्रविषे मच्छरको साथ लिये रहे, तब वहां एक मृग आनि प्राप्त हुआ, तिसका चरण मच्छरपर आय गया, जैसे किसीके ऊपर सुमेरु पर्वत आय पड़े, तब वह मच्छर चूर्ण हुआ, अरु मृतक भया, अरु मृतक होनेके समय मृगकी ओर देखा, उसके देखनेकारकै उसका शरीर मृगरूप हो गया, तब वह मरिकै तत्कालही मृग हुआ, वनविषे विचरने लगा, तब एक कालमें तिसको वधिकने देखा, अरु बाण चलाया, तिस बाणकार मृग वेधा गया, वेधा हुआ मृग वधिककी ओर देखता भया, तिस देखनेकार वह मरकै वधिक हुआ, तब धनुष अरु बाण लेकर मृग अरु पक्षीको मारने लगा, बहुरि एक समय वनविषे गया, तब एक मुनीश्वर वनविध देखा, तिसके निकट जाय बैवा, मुनीश्वरने कहा, हे भाई ! तू यह क्या, पापचेष्टाका