पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७४४

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महासकवास हैं, बरि अरती देखी तिस संक्ति जो महातेज यकमलविनास है, बहुरि आकार संयुक्त अंधक अप्रसन्न भया, हृदयान्तरस्वममहाप्रलयवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६. (, १६२५) वीर्यको ग्रहण करनेहारी हैं, कई रक्तको; कई कफको ग्रहण करती हैं, कई मलमूत्रवालियां हैं, सो सब मैं देखत भया, अपर अनेक विकार जो उसके अंतर थे सो सब देखत भया, देखकर मैं अप्रसन्न भया, महासंकल्परूप स्थान है, रक्त मज्जाकार संयुक्त अंधकार महानरककेतुल्य जीवको गर्भवास है, बहुरि आगे गया तहां एक कमल देखा, तिस हृदयकमलविषे तिनकी संवेदन फुरती देखी तिस संवेदन फुरणेविषे जो कछु मैं देखा है सो सुन, अरु कैसी वह संवेदन है, संवित्शक्ति जो महातेजवान् है, हृदयाकाश तहाँ वह स्थित है, कैसी स्थित है, त्रिलोकीका आदर्श है, त्रिलोकीविषे जो पदार्थ हैं, तिनका दीपक है, अरु सर्व पदार्थकी सत्तारूप है, ऐसी जो संविवरूपी जीवसत्ता है, सो तहाँ स्थित हैं, तिस सत्तासाथ मैं तद्रूपताको प्राप्त हुआ, तहाँ तिसके अंतर मैं देखा है सो सुन, सूर्य, चंद्रमा अरु पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, पर्वत, समुद्र, देवता, गंधर्व इनते आदि लेकर जो नानाप्रकारका जगत् है; स्थावर जंगम सब विश्वको मैं देखता भया, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र सहित संपूर्ण सृष्टिको देखकर मैं आश्चर्यवान् हुआ, उसके अंतर सृष्टि क्योंकार भासी सो सुन ॥ हे वधिक 1 जाग्रविषे उस सृष्टिको इंद्रियकारकै अनुभव किया था, अरु अंतर चित्तत्त्वविषे उसका संस्कार हुआ था, वही अंतर भास भासने लगा, अरु अंतर जो भूतसत्ता थी, सो उसके स्वप्नविषे यह सृष्टिरूप बाह्य बनी; अरु मुझको प्रत्यक्ष भासने लगी, जैसे जाग्रत् प्रत्यक्ष अर्थाकार भासती है, तैसे मुझको यह सृष्टि भासने लगी ॥ हे वधिक ! इस जाग्रत् सृष्टि अरु उस सृष्टिविषे भेद कछु न देखा, दोनों तुल्य हैं, अरु चिरपर्यंत प्रतीतिका नाम जाग्रत है, अरु अल्पकालकी प्रतीतिका नाम स्वप्न है, अरु स्वरूपते दोनों तुल्य हैं, जो उसके स्वप्न अनुभवविषे था सो मुझको जाग्रत् भासी, अरु जो मुझको जाग्रत् -भासी सो उसको स्वप्न भासा, निद्रादोष कारकै उसको स्वप्न हुआ, उसको भी तिस कालविषे जाग्रतरूप भासने लगी, काहेते कि स्वरूप है, सो जाग्रतविषे स्वप्न है, स्वप्नविषे तौ जाग्रत् है, तैसे जाग्रत भी अपने कालविषे जाग्रत है, नहीं तौ स्वरूप है, सोजाग्न