पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७५०

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हृदयान्तरश्वममहाप्रलयवर्णन-निर्वाणेप्रकरण, उत्तराई ६ ( १६३१ ) जड़ताको त्यागती भई, संपूर्ण जड़ताका त्याग नहीं किया, परंतु कछु अल्प त्यागा तब ऊरणेकरिकै चंद्रमा सूर्य आदिक जो कछु विश्व हैं सो और आया तब मैं नानाप्रकारके जगत्को देखता भया, मेरे ताई अपना पूर्व संस्कार भूलि गया, तहाँ मैं भी अपने कुटुंबविषे रहने लगा, साथही मेरे ताई अपनी कुटी भासी, अरु स्त्री पुत्र भाई जन बांधव सब भासि आये बहुरि मेरेविषे देखते देखते प्रलयकालके पुष्कर मेघ गर्जने लगे, अरु मूसलधारा वर्षने लगे, अरु सातों समुद्र उछले, अपर जो प्रलयकालके उपद्रव होते हैं, सो आनि उदय हुये, प्रथम अग्नि लगी, जब अग्नि लग चुकी, अरु सब स्थान जल रहे थे, तब जलको उपद्रव उदय हुआ, तब मैं क्या देखौं कि नगर, ग्राम, पुर, मनुष्य, पक्षी सब बहते जाते हैं, अरु हाहाकार शब्द करते हैं, बडा क्षोभ आनि हुआ, तब एक आश्चर्य मैं देखा, मेरी कुटीभी बहती जाती है,स्त्री, पुत्र, भाई जन इत्यादिक सब वहां देखता भया,सो सब जलके प्रवाहविषे बहते जाते हैं,अरु जिस स्थानविषे थे, सो स्थान भी बहते जाते हैं, अरु मैं लुढता जाता हौं, बहते बहते ऐसे मुझको कष्ट प्राप्त हुआ जो कहनेविषे नहीं आता, एक तरंगसाथ ऊध्र्वको चला जाऊं, अपर तरंगसाथ अधको चला जाऊ जब पूर्वं शरीर मुझको स्मरण आय पडा, तब जेता कछु जगत हैं, सो मुझको सब भासनेलगा, मिथ्या राग द्वेष सव मिटि गया, अरुशरीरकी चेष्टा सब उसप्रकार होवे, जो तरंगके साथ कबहूँ ऊर्ध्व कबहूँ नीचे आइ पडा, परंतु अंतर मेरा शांत हो गया, तिस कालमें नगर देशमंडल बहते जायँ, अरु त्रिनेत्र सदाशिव बहते जावें, विद्याधर गैर्व यक्ष किन्नर सिद्ध इनते आदिलेकर अपर भी सब बहते जावें, अष्टदल कमलकी पंखडीपर बैठा ब्रह्माजी बहता जावै,, इंद्र कुबेर अपनी पुरियोंसहित बहते जावें, अरु विष्णुजी अपनी वैकुंठपुरीसहित बहता जावै, बडे पहाड़ द्वीप लोकपाल सब बहते जावें, पातालवासी सब प्रलयके जलविषे बहते जावें, यम भी अपने वाहनसाथ बहता जावै, ऐसी समर्थता किसीकी नहीं कि किसीको कोऊ निकासै, जो आपही बहते जावें बहुरि डूब जावें, इसीप्रकार गोते खावें, तैसे बड़े ऐश्वर्यसहित देव बहते जावें, जो