पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७९

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योगवासिष्ठ।

भी श्रेष्ठ है, जब इष्ट विषय प्राप्त होता है, तब हर्षकरि प्रफुल्लित होते हैं, अरु अनिष्ट प्राप्त होता है, तब द्वेष करते हैं, अरु चित्रके पुरुषको रागद्वेष किसीविषे नहीं, इस कारणते मैं कहता हौं, कि चित्रका पुरुष भी इनते श्रेष्ठ है, अरु यह आधि व्याधिकरि पड़े जलते हैं, वह सदा ज्योंका त्यों है, अरु चित्रका पुरुष तब नाश होवै, जब आधारभूतको नाश करिए, अधिष्ठानके नाशबिना आधार भूतका नाश नहीं होता, अरु यह पुरुष अविनाशीके आधार है, तिसका नाश होता नहीं, अरु मूर्खता करिकै आपको नाश होता मानते हैं, रागद्वेषकरि संयुक्त है, ताते चित्रके पुरुषते भी तुच्छ है, अरु मनोराज्य संकल्परूप देह इस देहते श्रेष्ठ है, जेते कछु दुःख इसको होते हैं, सो बड़े कालपर्यंत रहते हैं, अरु मनोराज्यका दुःख हुआ बहुरि अपर संकल्पके आयेते उसका अभाव हो जाता है, ताते थोड़ा दुःख है, संकल्पदेहते भी स्थूलदेह तुच्छ है॥ हे रामजी! जो थोड़ा कालते देह हुई है, तिसविषे दुःख भी थोड़ा है, अरु जो दीर्घ संकल्परूपी देह है, सो दीर्घ दुःखको ग्रहण करता है, ताते महानीच है॥ हे रामजी! यह देह भी संकल्पमात्र है, सो न सत्यहै न असत्य है, तिसके भोगनिमित्त मूर्ख यत्न करते हैं, अरु क्लेश पातेहैं, अरु देह अभिमानकरिकै इसके सुखसाथ सुखी होते हैं, दुःखसाथ दुःखी होते थे, इसके नष्ट हुए आपको नष्ट हुआ मानते हैं, परंतु देहके नष्ट हुए पुरुषका नाश तौ नहीं होता, जैसे मनोराज्यके नाश हुए पुरुषका नाश नहीं होता, जैसे दूसरे चंद्रमाके नाश हुए चंद्रमाका नाश नहीं होता, तैसे इस देहके नाश हुए देही पुरुषका नाश नहीं होता, जैसे संकल्प पुरुषके नाश हुए पुरुषका नाश नहीं होता, जैसे स्वप्नभ्रमके नाश हुए पुरुषका नाश नहीं होता, तैसे देहके नाश हुए आत्माका नाश नहीं होता, जैसे घन धूप करिकै रणविषे जल भासता है, अरु भलीप्रकार जाय देखिये तब जलका अभाव हो जाता है, परंतु देखनेवालेका अभाव नहीं होता, तैसे संकल्पकरि रचा विनाशरूप जो देह है, तिसके नाश हुए तुम्हारा नाश तो नहीं होता॥ हे रामजी! दीर्घकालका रचा जो स्वप्नमय देह है, तिसके दुःख अरु नाशकरि