पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८१२

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निर्वाणौपदेशवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६. (१६९३) निराकार परमात्माविषे जगत् भी आकाशरूप है, इतर कछु नहीं, सर्व ब्रह्मस्वरूप है, इसका नाम परमबोध हैं, जब इस बोधकी दृढता होती है। तब मोक्ष होता है, जिसको सम्यक् बोध होता है,तिसको जगत् ब्रह्मस्वरूप भासता है, अरु अपना आप भासता है, अरु जिसको सम्यक् बोध नहीं भया, तिसको नानाप्रकारका द्वैतरूप जगत् भासता है । हे रामजी । जिसकी बुद्धि शास्त्रकार तीक्ष्ण भई है, अरु वैराग्य अभ्यासकार संपन्न निर्मल भई है, तिसको आत्मपद प्राप्त होता है,अरु जिसकी बुद्धि शास्त्रके अर्थकरि निर्मल नहीं भई तिसको अज्ञानसहितजगत् भासता है, जैसे किसी पुरुषके नेत्रविषे दूषण होता है, तिसको आकाशविषे ही चंद्रमा भासते हैं, अरु तरुवरे भ्रमकारकै भासते हैं, तैसे अज्ञानकारकै जगत् भासता है, जेता कछु जाग्रत् जगत् है, सो स्वप्नमात्र है, जब स्वप्नविषे होता है, तब स्वप्न भी जाग्रत् भासती है, अरु जाग्रत् स्वप्नवत् हो जाती हैं, अरु जाग्रविषे स्वप्न स्वप्न हो जाता है, जाग्रत् सत् भासती है, सो अल्पकालका नाम स्वप्न है, दीर्घकालका नाम जाग्रद है, आत्माविषे दोनोंका तुल्य भाव होता है, जैसे क्षणविषे दो भाई जोडे जन्मते हैं, सो नाममात्र दो हैं, वस्तुते एकरूप हैं, तैसे जाग्रत स्वप्न तुल्यही है, अरु जब यह पुरुष शरीरको त्यागता है, तब परलोक इसको जाग्रत हो जाता है। अरु यह जगत् स्वप्नवत हो जाता है, जैसे स्वप्नते जाग उठा तब स्वप्नके पदार्थीको भ्रममा जानता है, अरु जागृतुको सत् जानता है, तैसे जब परलोक जाता है, तब इस जगतुको स्वप्नवत् भ्रममात्र जानता है, अरु कहता है, स्वप्न जैसा मैं देखा था, वह परलोक सत् हो भासतो है, बहुरि वहांते गिरता है, इसलोकविचे आय पडता है, तब इसलोकको सत् जानता है, अरु जाभव मानता है ॥ अरु वह परलोकको स्वभ्रम मानता है । हे रामजी ! जबलग इसको शरीरसाथ संबंध है, तबलग अनेकवार जाग्रत् देखता है, अरु अनंतही स्वप्न देखता है॥ हे रामजी! जैसे मृत्युपर्यंत इसको अनेक स्वप्न आते हैं, तैसे मोक्षपर्यंत इसको अनेक जाग्रतुरूप जगत् भासते हैं, भ्रमांतरविषे इनकी सत्यता अरु जाग्रविषे स्वप्नके पदार्थ कोङ स्मरण करता है, जैसे सिद्ध प्रबुद्ध