पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८३३

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(१७१४) यौगवासिष्ठ । अनुभव आकाशविषे पृथ्वी आदिक तत्त्व भासि आते हैं, तब वही चिन्मात्रही आकार होकर भासता है, क्योंकि, अपर कछु नहीं, तैसे यह भी जान, जेता कछु जगत् तुझको भासता है, सो सब अनुभव रूप है, जैसे चिन्मात्र आत्माविषे सृष्टि आभासमात्र है, तैसे कारण कार्यभाव भी आभासमात्र है, परंतु वहीरूप है, आत्मसत्ताही इसप्रकार होकार भासती है, अरु यह पदार्थ जो कारण कार्यकारकै उपजे दृष्ट आते हैं, सो अभ्यासकी दृढताकारकै भासते हैं, आदि सृष्टि कछु कारणकारकै नहीं उपजी, पाछे कारणकर कार्य उत्पत्ति हृष्ट आती है, यद्यपि कार्य कारण दृष्ट आते हैं, तौ भी कछु उपजा नहीं, सदा अद्वैतरूप है, जैसे स्वप्नविषे नानाप्रकारके कार्य कारण भासि आते हैं, परंतु कछ हुये तौ नहीं, सदा अद्वैतरूप हैं, तैसे जाग्रविषे भी जान, पदार्थको स्मृति भी स्वप्नविषे होती है, अनुभव भी स्वप्नविषे होता है, जो स्वप्नही नहीं फुरा तौ भी मृत्यु कहा है, अरु अनुभव कहाँ है, न जगतका अनुभव है, न जगत है, अनुभवसत्ताही जगरूप हो भासती है, सोजाग्ररूप है, जब तिसका अनुभव होवैगा तब न स्मृति रहेगी, न जगत् रहेगा, ताते ॥ हे रामजी ! जो अनुभवरूप है तिसका अनुभव करु, यह जगत् भ्रमरूप है, जो उपजा नहीं सो स्वतः सिद्ध है, अरु जो उपजा है, अरु जिसविषे भासता है, तिसको उसीका रूप जान, इतर तौ कछु नहीं, जैसे स्वप्नविषे पदार्थ भासते हैं, सो उपजे नहीं, परंतु उपजे दृष्ट आते हैं, सो अनुभवविषे उपजे हैं, अनुभव स्वतःसिद्ध है, तिसविषे जो पदार्थ भासते हैं, सो अनुभवरूप हैं अनुभवही इसप्रकार हो भासता हैं, तैसे यह सब अनुभवरूप हैं, इतर कछु नहीं, जेता कछु जगत है, सो आत्मरूप है, ताते हे रामजी । जेता कछु जगत् है, सो अंकारण है, आत्माको आभास है, कारण कारकै कछु बना नहीं, अनंत ब्रह्माड ब्रह्मसत्ताविषे आभास ऊरते हैं, अरु अज्ञानीको कार्य कारणसहित भासते हैं, तिसविषे नेति हुई है; जब जागिकार देखेगा, तब सर्व अद्वैतरूप भासैगा, न कोऊ नेति है, न जगत है, जबलग अज्ञाननिद्राविषे सोया हुआ है, तबलग जो पदार्थ उस सृष्टिविषे हैं, सोई भासँगे, जैसा कर्म है।