पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८५८

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परमार्थगीतावर्णन-निर्वाणकरण, उत्तराई ६ (१७३९) है, न कोऊ कहेगा, यह अज्ञानीको बडी संसाररूपी भ्रांति उदय भई है, परंतु जो मेरे शास्त्रको वारंवार विचारैगा, तब उसकी भ्रांति निवृत्त हो जावैगी, दिनके दो विभाग करै, अर्ध दिनर्यत मेरा शास्त्र विचारै, अरु अधे दिन अपने आचारविषे व्यतीत करै, अरु जो अर्घ दिन शास्त्रका विचार न कर सकै तौ एक प्रहर विचारे, जैसे सूर्यके उदय भये अंधकार निवृत्त होता है, तैसे इसकी भ्रांति निवृत्त होजावेगी,अरु जो मेरे वचनोंको वृथा जानिकार निंदा करेगा, तिसको आत्मपदकी प्राप्ति न होवैगी, काहेते जो उसने शास्त्रके पैहेको नहीं जाना, ताते इस जीवको यह कर्तव्य है, कि प्रथम अपर शास्त्रको देख विचारि लेवे, पाछेते इसको विचारै, कि उसको इस शास्त्रकी महिमा भासे ।। हे रामजी ! यह मोक्षोपाय जो शास्त्र है,सो आत्मबोध परम कारण है, अरु यह जीव पदपदार्थको जाननेवाला हो, अरु इस शास्त्रको वारंवार विचारे,तब इसकी भ्रांति निवृत्त हो जावेगी,जो संपूर्ण ग्रंथके आश्रयको न जान सकै, तौ थोड़ा थोड़ा बाँचै अरु विचारै, इसके तई सब भासि आवैगी॥ हे रामजी । कछु यह पुरुष पदार्थको जाननेवाला होवै, सो फेरि इसके विचाणे अरु पढनेकरि बुद्धिमान् अरु प्रीतिमान् कार लेता है, इसके विचरनेवालेकी बुद्धि अपर शास्त्रकी ओर नहीं जाती, ताते यह विचारने योग्य है, अरु जो पुरुष आत्मविचारते रहित है, तिसका जीना वृथा है, अरु जिनको यह विचार है, तिनको सब पदार्थ आत्मरूप हो जाते हैं, जो एक श्वास भी आत्मविचारते रहित होता है, सो वृथा जाता है, एक श्वासके समान संपूर्ण पृथ्वीका धन नहीं, जो संपूर्ण पृथ्वीके रत्न नजावें, अरु एक श्वास गया बहुरि मांगिये तो नहीं पाता,ऐसे श्वासको जो वृथा गॅमावते हैं,तिनको तू पशु जान ॥ हे रामजी! आयुर्बल बिजुलीके चमकारवत है, जैसे बिजुलीका चमत्कार होकार मिटि जाता है, तैसे शरीर आयुर्बल होकार नष्ट हो जाता है, ऐसे शरीरको धारिकारे जो सुखकी तृष्णा करते हैं, सो महामूर्ख हैं । हे रामजी ! यह संपूर्ण जगत् आभासमात्र है, सत् भासता है, तो भी इसको असन्जान, जैसे स्वप्नसृष्टिविषे मृतक होता है, तिसके बांधव रुदन करते हैं। प्रत्यक्ष अनुभव होता