पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

ब्रह्मगौतावर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६: (१७४३) सृष्टि जो उपजती है, सो अकारणरूप है, पाछेते सृष्टिकालविषे कारण कार्यरूप हुये हैं, जैसे स्वप्नसृष्टि आदि कारणविना होती हैं, पाछेते कारणकार्य भासते हैं, अरु वास्तवते न कोऊ आकाश है, न शून्य हैं, न अशून्य है, न सत् है, न असव है, न असतके सदके मध्य है, न नित्य है, न अनित्य है, न परम हैं, न अपरम है, न शुद्ध है, न अशुद्ध है, द्वैत कछु नहीं, सत्र भ्रम हैं ॥ हे रामजी ! ज्ञानवान्को सर्व शब्द अरु अर्थ ब्रह्मरूप भासते हैं, हमको तौ कारणकार्यभावकी कल्पना कछु नहीं, जैसे सूर्यविषे अंधकारका अभाव है, तैसे ज्ञानवान्को कारणकार्यका अभाव है, जो सर्वात्माही है, तो कारणकार्य किसको कहिये ।। राम उवाच ॥ हे भगवन् । ज्ञानीकी बात पूछता हौं, उनको कारणकार्यभाव किसनिमित्त भासता है, जो कारणकार्य नहीं तौ मृत्तिका अरु कुलाल आदि कारकै घटादिक क्योंकार उत्पन्न होते दृष्ट आते हैं, ताते तुम कहो कि ज्ञानवान्को अकारण कैसे भासते हैं, अरु अज्ञानीको सकारण क्योंकार भासते हैं, यह मेरे ताई ज्ञानी अरु अज्ञानीका निश्चय कहौ । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । न कोऊ कारण है, न कार्य है, न कोऊ अज्ञानी है। मैं तुझको क्या कहौं, जो ज्ञानवान् पुरुष हैं, तिनके निश्चयविषे जगत्की • कल्पना कोऊ नहीं आरती उनके निश्चयविषे जगत है नहीं, तौ ज्ञानी अरु अज्ञानी क्या ॥ हे रामजी! आकाशका वृक्ष नहीं, तौ तिसका वर्णन क्या करिये, अरु जैसे हिमालय पर्वतविषे अग्निका कणका नहीं होता. तैसे ज्ञानीके निश्चयविषे जगत् नहीं होता, ज्ञानी अज्ञानी अरु कारण कार्य यह शब्द जगचविषे होते हैं, जो जगतही कुरा नहीं तौ कारण कार्य ज्ञानी अज्ञानी तुझको क्या कहौं, जैसे स्वप्नविषे सृष्टि सुषुप्तिविषे लीन हो जाती है, तहां शब्द अरु अर्थ कोऊ नहीं फुरता, तैसे ज्ञानवान्को निश्चयविषे जगदही नहीं फुरता ॥ हे रामजी । हमको तौ सर्व ब्रह्मही : भासता है, मुझको कछु कहना नहीं आता, परंतु कछु कहता हौं, तुझने पूछा है, इस निमित्त अज्ञानीके निश्चयको अंगीकार करके कहता हौं । हे रामजी । यह जगत् अकारण है, अरु आभासमात्र है, किसी आरंभ अरु परिणामकार नहीं भया, जब पदार्थका कारण विचारिये तब सब