पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८६३

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( १७४४ ) | यौगवासिष्ठ । अधिष्ठान ब्रह्म निकसता है, सो अद्वैत अच्युत है, अरु सर्व इच्छाते रहित है, तिसको कारण कैसे कहिये, ताते जानाजाता है, कि जगत् आभासमात्र है, अपर बस्तु कछु नहीं, आत्मसत्ताही इसप्रकार भासती है, जैसे स्वप्नकी सृष्टि.अकारण होती है, तिसविषे अनेक पदार्थ भासते हैं, तिनका कारण विचारिये तो सबका अधिष्ठान अनुभव निकसता हैं, तिसविषे आरंभ अरु परिणाम कछ हुआ नहीं, सृष्टि अनुभवरूप हो भासती है, जो पुरुष स्वप्नविषे है, तिसको स्वरूपके प्रमाकोरे कारण कार्य जगत भासता है, पुण्य पाप सब यथार्थ भासते हैं, तैसे जाग्रत जगत् भासता है ॥ हे रामजी सृष्टि आदि अकारण हुई है, पाछे सृष्टिकालविषे कारण कार्यरूप हो भासते हैं, अरु जिसको अपना वास्तव स्वरूप स्मरण है। तिसको अकारण भासता है, अरु जिस अज्ञानीको अपने वास्तव स्वरूपका प्रमाद हैं, तिसको कारण कार्यरूप सृष्टि स्वप्नवत् भासती है ॥ हे रामजी । वस्तु एकही अनुभव आत्मसत्ता है, परंतु जैसा जैसा अनुभवविषे संकल्प दृढ होता हैं, तिसहीकी सिद्धि होती है, जिसका तीव्र संवेग होता है सोई होय भासता है, इसविषे संदेह कछु नहीं, कल्पवृक्षके पदार्थ निकस आते हैं, सो क्या है, संकल्पकी तीव्रताकारकै प्रत्यक्ष आनि होते हैं, वह किसीका कार्य कहिये, अरु जगत् किसी कारणकार उत्पन्न होता है, तौ महाप्रलयविषे भी कछु शेष रहता, जैसे अग्निके पाछे भस्म रह जाती हैं, सो तौ कछु नहीं रहता, जैसे स्वप्नकी भट्टि जागे हुए कछु नहीं रहती, तैसे महाप्रलयविषे जगत्का शेष कछु नहीं रहता, ताते जानाजाता है, कि आभासमात्र है, जैसे ध्यान विषे, ध्याता पुरुष जो किसी आकारको रचता है, तिसका कारण कोऊ नहीं होता, वह तौ आकाशरूप है, अनुभवसत्ताही फुरणेकरिके इसप्रकार हो भासती है, आकार तौ कोङ नहीं, जैसे गंधर्वनगर कारणते रहित भासता है, तैसे यह जगत् कारणविना भासि आया है, न कोऊ धृथ्वी है, न कोऊ जल है, न तेज वायु आकाश हैं, सब आकाशरूप हैं, परंतु संकल्पकी दृढता कारकै पिंडाकार भासता है । हे रामजी ! जब यह पुरुष मरि जाता है, तब शरीर यहाँही भस्म हो जाता है, बहुरि रहता; किसी आम है, अ जैसे गंध है, नका