पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८६७

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(१७४८) योगवासिष्ठ । श्रवणको शोभता है । है रामजी! आगे भी मैं तुझको कहा है, अबभी कहता हौं, प्रसंगको पायकार जो एक कालमें एक सृष्टिविषे इंद्र ब्राह्मण था, मानौ ब्रह्माजी है, तिसके गृहविषे दश पुत्र होत भये, मानौ दश दिशा हैं, केते कालके पश्चात् वह मृतक भया, तिसकी स्त्री पतिव्रता थी, तिसके प्राण भी ब्राह्मणके पाछे छूट गये, जैसे दिनके पाछे सँध्या जाती है, तैसे ब्राह्मणी गई, तब तिन पुत्रोंने यथाशास्त्र क्रमकारि तिनकी क्रिया करी, बहुरि एक पहाड़की कंदराविषे जाय स्थित भये, अरु विचारत भये कि, किसी प्रकार हम ऊंचे एको पावैं ॥ हे रामजी। आगे मैं तुझको सुनाया है, जो मंडलेश्व अरु चक्रवत्त राजा अरु इंद्रादिकके पदको विचारत भये, बहुरि बडे भाईने निर्णय कारकै यही कहा कि, सुबते ऊँचा ब्रह्माजीका पद है, जिसकी यह सब सृष्टि रची हुई है, हम दृशही ब्रह्मा होवें, ऐसे विचार कारकै दशही पद्मासन करि बैठे, यह निश्चय धारा कि, हम चतुर्मुख ब्रह्मा हैं, सब सृष्टि हमारी रची है, ऐसे हो गये, मानौ पुतलियाँ लिखी हुई हैं, खानपानते रहित मास युग वर्ष व्यतीत हो गये, वह ज्योंके त्यों रहे; चलायमान न भये, जैसे जल नीची ठौरको जाता है, ऊँचे नहीं फिरता, तैसे वह अपने निश्चयको न त्यागत भये, दृढ रहे, जब केतक काल व्यतीत भया, तब उनके शरीर गिर पडे उनको पक्षी खाय गये, यह जो ब्रह्माकी वासना संयुक्त संवित् थी तिस वासना कारकै दशही ब्रह्मा होगये, अरु दशही तिसकी सृष्टि देश कालु पदार्थ नेतिसहित हो गई, जैसे हमारी सृष्टि है, तैसे वह सृष्टि भई ॥ हे रामजी ! वह सृष्टि क्यारूप हुई, आत्माही वस्तु हुईं, अपर तौ कछु नहीं, कछु अपर होवै तब कहों, ताते सृष्टिका अपर रूप कछु नहीं, अपना अनुभवही सृष्टिरूप भासताहै, जेते कछु पदार्थ भासते हैं सो सब आत्मारूप हैं ॥ हे रामजी । जैसे हम ब्रह्माके संकल्पविषे रचे हैं, तैसे उनने भी रचि लिये, वह भी इसप्रकार स्थित हो गये, ताते सर्व जगत् ब्रह्मस्वरूप है, जो कछु कारण कारकै जगत् बना • होता तौ जानाजाता कि, कछ हुआ है, इसका कारण को नहीं पाते, संकल्पमात्र आभासमात्र है, ताते कहता हैं कि, ब्रह्मही है, अपर वस्तु