पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८७५

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( १७५६) यौगवासि । बहुरि चला अरु कहत भया । हे साधो ! इम देशको चले हैं, जबलग शरीर है, तबलग शरीरके स्वभाव भी हैं, आगे एक वन आया बहुत सुंदर फूल फल बँटे सले हुए हैं, भंवरे विचरते हैं, जलके प्रवाह चलते हैं, कोयल अरु तोते अरु बगले इनते आदि लेकर पक्षी पशु वृक्ष हम देखत भये, आगे ताल वृक्ष बहुत देखे, बहुरि आगे कैदराके स्थानआये ऐसे स्थान हम लंचते गये ॥ हे रामजी। राजसी तामसी सात्विकी तीनों गुणके रचे स्थानको लंचते मथुरा नगरके मार्ग आये; जो सीधा मार्ग था, तिसको छाडिकार वह टेढे मार्ग चला, तब मैंने कहा ।। हे साधो ! सुधे मार्गको छाडिकारे तू टेढा क्यों चलता है, तब उसने कहा ॥ है। साधो ! तू चला आऊ, इस मार्गमें गौरी भगवतीका स्थान है, तिनका दर्शन करते जावें, अरु मेरे अपर सप्त भाई गौरीके स्थानपर इसी कामनाको लेकर तप करते थे, तिनकी भी सुधि ले आवै । हे रामजी ! जब हम उस मार्ग के सन्मुख चले तब आगे एक महाशून्य वन था, मानौ शून्य आकाश है,महातमरूप,तहाँ कोऊवृक्ष हुए न आवै,अपर पशु पक्षी मनुष्य कोऊदृष्ट न आवै,तिस वनविषे उसने मुझेको कहा॥हेब्राह्मण इस स्थानविषे मैं आगे पद्मास रहा हौं, अरु मेरे सप्त भाई अपर थे उन्होंने भी यह कामना धरिकार देवीका तप आरंभ किया था, चलौ देखिये, महापवित्र स्थान है, जिसके दर्शन कियेते संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं, तब मैंने कहा चलिये, पवित्र स्थानको देखा चाहिये॥हे रामजी । ऐसे विचार कार चले जावें, जाते मरुस्थलकी तपी हुई पृथ्वीपर जाय निकसो,वह ब्राह्मण देखकर गिर पडा,अरु कहत भयो । हा कष्ट! हा कष्ट हम कहां आनि पड़े, मुझको भी भ्रम उदय हुआ कि, यह क्या भयाबहुरि उठा, उठिकार आगे गये, तब एक वृक्ष हमको दृष्ट पड़ा, तिसके नीचे एक तपस्वी बैठा है, ध्यानविषे स्थित देखकर हम तिसके निकट गये जायंकार कहा ॥ हे मुनीश्वर! जाग जाग, जब हम बहुतवार कहा, तब उसने नेत्र खोलिकार हमको देखा, अरु कहा कौन हौ तुम कौन हौ, ऐसे कहकर कहा, बहुत आश्चर्य है, यहां गौरीका स्थान था, वह कहाँ गया वृक्ष बावलियां कमल थे, वह कहां गये, बडे सुंदर