पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(१७५८) योगवासिष्ठ । गई, मैं सुकृत कछु न किया यह विषयभोग आपातरमणीय नाशवंत हैं, इनको मैं चिरपर्यंत भोगता रहा हौं अरु मुझको शांति न प्राप्त भई, तृष्णा बढ़ती गई, ताते वही उपाय करौं जिसकरि सुझको शांति प्राप्त होवे, बहुरि दुःखी कदाचित् न होऊ ॥ हे साधो । यह विचार मुझको अनि उदय भया, तब मैं वैराग्य कारकै राज्यकी लक्ष्मी त्याग करी, ऋषि अरु मुनिके स्थान देखता इस कदंब वृक्षके नीचे आनि स्थित भया, अरु ब्राह्मण आठ भाई आये थे, सो एक तौ यह इसी पर्वतके ऊपर तप करने जाय लगा था, अरु एक स्वामी कर्तिकके पर्वत ऊपर तप करने लगा था, एक बनारसविषे तप करने लगा, एक हिमालयके ऊपर तप करने लगा, चार भाई तौ इसप्रकार चारों स्थानोंको गये, अरु अपर चार भाई यहां तप करने लगे, अरु कामना आठौं की है कि, हम सप्तद्वीपपृथ्वीके राजा होवें ॥ है साधो। इसको तो सूर्यने वर दिया है, अरु अपर जो सात थे, तिनने वागीश्वरी भवानीको इष्ट कारकै तप किया, जब वह प्रसन्न भई, अरुकहा, वर माँगहु, तब उन्होंने कहा, हम सप्तद्वीप पृथ्वीके राजा होवें,सातने एकै वर माँगा,तिनको वर देकर परमेश्वरी अंतर्धान हो गई, अरु यह भी वर माँगा जो यहाँके वासी हैं, तिनका स्थान भी हमारे पास होवे ॥ हे साधो इस वरको पाइकार वहाँते चले, अपने गृह गये,अरु वह सदाशिवकी अर्धशरीर बारह वर्षपर्यन्त रही, बार उनकी मर्यादा थापनेनिमित्त वहाँते अंतर्धान हो गई, यहाँके वासी भी सब जाते रहे, वागीश्वरीके जानेकार यह स्थान शून्य हो गया, एक यह कदंब वृक्षही बचा हैं, एक मैं ध्यानविषे स्थित रहा हौं, यह वृक्ष भी रहा है, जो वागीश्वरीने अपने हाथकर लगाया है, इस कारणते यह नष्ट नहीं भया, अरु जर्जरीभाव भी नहीं भया । हे साधो इसके पास जो वस्तीवाले मनुष्य थे सो भी जाते रहे ॥ भगवती अंतर्धान हो गई, मैं ध्याननिष्ठ हो रहा, अपर जीव यहाँ आयकर अदृष्ट हो गये, इसकारण सब शुभ आचार रहे अरु उन आठों भाईविषे एक यह बैठा है, इसको भी घर जाना है, सात आगे गये हैं,वहाँ सब एकड़े जाय होवेंगे, जैसे अष्टवसु ब्रह्मपुरीविषे एकत्र होवें तैसे एकत्र होवेंगे ॥ हे साधो। जब गृहते तप करने