पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८८०

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ब्राह्मणभविष्यद्राज्यप्राप्तिवर्णन-निर्वाणकरणे, उत्तराई ६. ( १७६१) मुहूर्तपर्यंत जडीभूत सुषुप्त होवैगी, तिसके अनंतर चेतनता फुरि आवैगी शंख चक्र गदा पद्म चतुर्भुज विष्णुका रूप धारिके वर आवेंगे अरु त्रिनेत्र हाथविषे त्रिशूल भुकुटी चढाय क्रोधवान् सदाशिवका रूप धारि कार शाप आवैगे, दोनों इकडे आनि होवैगे, तब वर कहेंगे ॥ हे शाप! तुम क्यों आये हौ ? अब तौ हमारा समय हैं, जैसे एक ऋतुके समय दूसरी नहीं आती, तैसे तुम न आवडु, तब शाप कहेंगे ॥ हे वरो। तुम क्यों आये हौ, अब तौ हमारा समय है, जैसे एक ऋतुके होते दूसरीका आना नहीं बनता, तैसे तुम्हारा आना नहीं बनता, तब वर कहेंगे ॥ हे शाप ! तुम्हारा कर्ता ऋषि मनुष्य है, अरु हमारा कर्त्त देवता हैं, मनुष्यकार देवता पूजने योग्य हैं, काहेते कि बड़े हैं, ताते तुम जावहु, जब इसप्रकार वर कहेंगे, तब शाप क्रोधवान् होवैगे, अरु मारणेके निमित्त त्रिशूल हाथविषे उठावेंगे तब वर कहेंगे ॥ हे शापो ! तुम अरु हम लडेंगे, तब पाछे किसी बड़े न्यायकर्त्तके पास जावेंगे, तब हमारा युद्ध निवृत्त करैगा, सो प्रथम क्यों न किसी बडेके पास जावें, जो कछु हमारे ताई कहें, सो अंगीकार करना, ताते अबहीं चलौ, तब शाप कहेंगे॥हे वरो। कोऊ युक्तिसहित वचन कहता है, तिसको सब को मानता है, तुमने भला कहा है,चलिये,ऐसे चर्चा कारकै दोनों ब्रह्मपुरीविषेजावेंगे, जायकरि ब्रह्मा जीको प्रणाम करेंगे । हे देव ! यह हमारा न्याय करौ, जो प्रथम वृत्तांत कहिकार वर उनको स्पर्श करै हैं, अथवाशाप स्पर्श करे हैं, तब ब्रह्माजी कहैगा ॥ हे साधो !जो जिनका अभ्यासउनके अंतर दृढ होवे सो प्रवेश करौ, तब वरके स्थान शाप जायकारि ढूंढेंगे, अरुशापके स्थान वर जाय ढूंढेगे ढूंढिकार शाप आय कहेंगे ॥ हे स्वामी ! हमारी हानि हुई है; अरु वरकी जय हुई है, काहेते कि, उनके अंतर वरही स्थित हैं, जिसका अभ्यास अंतर स्थित है, तिसीकी जय होती है, सो तौ इनके अंतर वज्रसारकी नई वर स्थित हैं ॥ हे स्वामी! हमारा आधिभौतिक शरीर कोऊ नहीं, हम संकल्परूप हैं, तिस संकल्पकी दृढता होती है, सोई आनि उदय होता है, वरका कर्ता भी ज्ञानमात्र होता है, वरको लेता भी वही ज्ञानरूप है, वरको ग्रहण करता जानता जो यह हमारा स्वामी है, तिस