पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८८२

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ब्राह्मणभविष्यद्राज्यप्राप्तिवर्णन-निर्वाणकरण, उत्तराई ६.(१७६३) आश्चर्य है, तैसे यह आश्चर्य है । ब्राह्मण उवाच ॥ हे साधो । ब्रह्मरूपी आकाश है, तिसके अणुका जो सूक्ष्म अणु है, तिसविपे जो स्वप्न फुरा है सो हमारा जगत् है, तिस स्वप्नविषे यह सृष्टि समाये रही हैं सो मंदिरविषे समावना क्या आश्चर्य है । हे साधो ! यह जगत् सब स्वप्नमात्र है,अहं त्वंआदिक जगत् सब स्वप्ननिद्राविषे फुरती हैं, आत्मसत्ता सदा अद्वैत है, परमशति अरु अनंत है, तिसविषे जगत् आभासमात्र है, जैसे स्वप्नविषे अपना अनुभव सूक्ष्मते सूक्ष्म होता है, तिसविषे त्रिलोकी भासि आती है, जो सूक्ष्मसंविविषे त्रिलोकी भासि आती है, तौमंदिरविषे भासना क्या आश्चर्य है ॥ हे साधो ! जब यह पुरुष मर जाता है, तब इसकी सूक्ष्म पुर्यष्टको जड हो जाती है, तिसविषे बहुार त्रिलोकी फुरि आती है, सो तुम देखहु, सूक्ष्महीविषे भासि आई, क्योंकि जो परमसूक्ष्मविषे सृष्टि बन जाती है, तो मंदिरविषे होनेका क्या आश्चर्य है। ॥ हे साधो ! जेता कछु जगत् भासता है सो सब आत्माविषे स्थित है, तिसका किंचन इसप्रकार हो भासता है, ताते तुम जावहु, उनको राज्य भोगावहु ॥ है कुंददत ! जब इस प्रकार ब्रह्माजी कहेगा, तब वर नमस्कार करिकै आधिभौतिक शरीरको त्याग देवेंगे, अंतवाहक शरीर साथ उनके हृदयविषे आनि स्थित होवैगे, जैसे एक शत्रुको दूर कार दूसरा आनि स्थित होवै, तैसे शापको दूर कारकै उनके हृदयविषे वर आनि स्थित भये, तिनको त्रिलोकी भासने लगी, अरु पुर्यष्टकाको अंतःपुरविषे वरने रोकि छोडा, जैसे जल बनको रोकता है, तैसे उनकी पुर्यष्टकाको रोकि छोडा ॥ हे कुंदत | इसप्रकार उनको अपने अंतःपुरविषे सृष्टि भासी अरु जानत भये, हम सप्तद्वीपके राजा हुये हैं, इसप्रकार आठही उस अंतःपुरविषे सप्तद्वीप पृथ्वीके राजा हुये, परंतु उसको वह न जानैं, परस्पर अज्ञात सृष्टिके एक राजा सप्तद्वीपका भया, अरु रहनेका स्थान जंबूद्वीपविषे जो उज्जयिनी है, तिसविषे उसकी राजधानी हुई, अरु एक कुशद्वीपविषे रहने लगा, एक राजा क्रौंचद्वीपविणे रहने लगा, अरु एक शाकद्वीपविष रहै, जो तिखको हरकारे अनि कहेंगे, पातालके नाग बड़े दुष्ट हैं, तिनको किसी प्रकार जीत, तब वह