पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९०७

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(१७८८) योगवासिष्ठ । वट होता है, तैसे इसका कारण कौन है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! जगत सूक्ष्म अणुते उपजाता है,अरुकीन भी तत्त्वके अणुविषे होताहै। वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । सूक्ष्म अणु किसविषे रहते हैं ॥राम उवाच ॥ हे सुनीश्वर ! महाप्रलयविषे शुद्ध चिन्मात्रसत्ता शेष रहती है, तिसविषे अणु रहते हैं। वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! महाप्रलय किसको कहतेहैं, जहाँ सर्व शब्द अर्थका अभाव हैं, तिसका नाम महाप्रलय हैं, तहां शुद्ध चिन्मात्रसत्ता रहती है, तिसविषे वाणीकी गम नहीं, तौ सूक्ष्म अणु कैसे होवै, अरु कारण कार्यभाव कैसे होवै ॥ राम उवाच ॥ हे मुनीश्वर ! जो शुद्ध चिन्मात्रसत्ता रहती हैं, तिसविषे जगत कैसे निकसि आता है ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । विश्व कछु उपजी होवै तौ मैं तुझको कहौं, जो इसप्रकार जगत्की उत्पत्ति होती है, जो जगत् कछु उपजा नहीं, तौ इसकी उत्पत्ति कैसे कहौं, जब चिन्मात्रविषे चैतता फुरती है, तब जगत् अहं त्वं आदिक भासता है, सो फुरणाहीरूप है, अपर कछु उपजा नहीं, वहीरूप है ॥ हे रामजी ! ज्ञानका जो दृश्यन्नमसाथ मिलाप है,सो बँधनका कारण है, तिसका अभाव होना मोक्ष है ॥ राम उवाच ॥ है। भगवन् ! ज्ञानके भये जगत्का अभाव कैसे होता है, यह तौ दृढ़ होरहा है, इसकी शांति कैसे होती हैं। वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी। सम्यक्रज्ञान कार जो बोध होता है, तिस बोधकारकै दृश्यका संबंध निवृत्त होता हैं, सो बोध कैसा है, निराकार निज शीतलरूप है,तिसकर मोक्षविषे प्रवर्तता है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! बोध त केवलरूप है, सम्यकून किसको कहते हैं, जिसकारि यह जीव बंधनते मुक्त होता है । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी। जिसज्ञानकारि ज्ञेय दृश्यका संयोग नहीं, तिसको केवलज्ञानी अविनाशीरूप कहते हैं, जब ज्ञेयका अभाव होता है, तब सम्यक्ज्ञान कहता है, जगत ज्ञेय अविचारसिद्ध है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! ज्ञानसों ज्ञेय भिन्न है, अथवा अभिन्न है, अरु ज्ञान उत्पत्ति कारण कैसे होता है । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । बोधमात्रका नाम ज्ञान है, तिसते ज्ञान ज्ञेय भिन्न नहीं, जैसे वायुते वायुका ऊरणा भिन्न नहीं ॥ राम उवाच ॥ हे त्रिकालज्ञ भूत भविष्य वर्त्तमानके जाननेहारे ! है, इसका तिस बोधकारकइसकरि मोक्षविषप्रय