पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९०८

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। विद्यावादबौधोपदेशवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६. ( १७८९) जो शशेके श्रृंगकी नई ज्ञेय असत् है, तौ भिन्न होकर क्यों भासते हैं । वसिष्ठ उवाच ।। हे रामजी । बाह्य जगत् ज्ञेय भ्रांतिकारकै भासता हैं, तिसका सद्भाव नहीं, न अंतर जगत् हैं, न बाहर जगत् है, अर्थते रहित भासता है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! अहं त्वं आदिक प्रत्यक्ष भासते हैं अर्थसहित अनुभव होता है, तुम कैसे अभाव कहते हौ । वसिष्ठ उवाच॥हे रामजीयह सर्व जगत् विराट् पुरुषका वपु है,सो आदि विराट भी उपजा कछु नहीं, तौ अपरकी उत्पत्ति कैसे कहिये । राम उवाच ॥ हे मुनीश्वर ! तीनों कालविषे जगत्का सद्भाव पाता है, तुम कहते हौ उपजा नहीं ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! जैसे स्वप्नविषे सब जगत् अर्थ प्रत्यक्ष भासते हैं, अरु कछु उपजा नहीं, जैसे मृगतृरूणाका जल, आकाशविष द्वितीय चंद्रमा, संकल्पनगर भ्रमकारभासते हैं, तैसे अहं त्वं आदिकजगत् भ्रमकार भासता है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! अहं त्वं आदिक जगत् दृढ भासता है तौ कैसे जानिये, जो उपजा नहीं । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । पदार्थ कारणते उपजा है, सो निश्चयकारे सत्य जानाजाता है, जब महाप्रलय होती है, तब कारण कार्य कछु नहीं रहता, सब शतरूप होता है, बहुरि तिस महाप्रलयसों जगत् ऊरि आता है, इंसते जानाजाता है, कि सब आभासमात्र है ॥ राम उवाच ॥हे मुनीश्वर ! जब महाप्रलय होता है,तब अज अविनाशी सत्ता शेष रहती है; ताते जानाजाता है कि, वही जगत्का कारण है ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! जैसा कारण होता है, तैसाही तिसका कार्य होता है, तिसते विपर्यय नहीं होता, जो आत्मसत्ता अद्वैत आकाशरूप है, तौ जगत् भी वहीरूप है, घटते पटकी नई अपर तौ कछु नहीं उपजता ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! जब महाप्रलय होता है, तब जगह सूक्ष्मरूप होकार स्थित होता है, तिसते बारे प्रवृत्ति होती हैं । वसिष्ठ उवाच ॥ हे निष्पाप रामजी ! महाप्रलयविषे जो तुझने सृष्टिका अनुभव किया सो क्या रूप होता है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन्! ज्ञप्तिरूप सत्ताही तहां स्थित होती है, तुमसारखेने अनुभव किया है, सो आकाशरूप है, सत् अरु असद शब्दकार नहीं कही जाती ॥ वसिष्ठ