पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९०९

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( १७९०) यौगवासिष्ठ । उवाच ॥ हे महाबाहो ! जो ऐसे हुआ तौ भी जगत् तौ ज्ञप्तिरूप हुआ क्यों, ताते जन्ममरणते रहित शुद्ध ज्ञानरूप है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! तुम कहते हो कि जगत् कछु उत्पन्न नहीं भया, भ्रममात्र हैं, सो भ्रम कहते आया है ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । यह जगत् चित्तके फुरणेकरि भासता हैं, जैसे जैसे चित्त फुरणा करता है, जैसे तैसे भासता है, इसका अपर कारण कोऊ नहीं ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! जो चित्तके ऊरणेकार भासता है तौ परस्पर विरुद्ध कैसे भासते हैं, अग्निको जल नष्ट करता है, जलकी अग्नि नष्ट करती है ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! द्रष्टा जो पुरुष सो दृश्यभावको नहीं प्राप्त होता, अरु ऐसी कछु वस्तु नहीं, भानरूप आत्माही चेतनघन सर्व रूप हो भासता है ॥ राम उवाच ।। हे भगवन् ! चिन्मात्रतत्व आदि अंतते रहित हैं, जब जगत्को चेतता है, तब होता है, तो भी तो कछु हुआ, क्योंकि जगत् चैत्यका असंभव कैसे कहिये ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । इसका कारण कोऊ नहीं, ताते चैत्यका असंभव है, चेतन सदा मुक्त अरु अवाच्य पद है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! जो इस प्रकार है, तौ जगत्का अरु तत्त्वका ऊरणा कैसे होता है, अहं त्वं आदिक द्वैत कहते आया है । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । कारणके अभावते यह जगत् कछु आदिते उपजा नहीं, सर्व शतरूप है, अरु नाना भासता है, सो भ्रममात्र है ॥ राम उवाच ।। हे भगवन् ! प्रकाशरूप सर्वदा जो निर्मल तत्त्व है, सो निरुल्लेख अचलरूप है, तिसविषे भ्रांति कैसे है, अरु किसको है ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी, कारणके अभावते निश्च यकारि जान कि भ्रांति कछु वस्तु नहीं, अहं त्वं आदिक सर्व एक अनामयसत्ता स्थित है ॥ राम उवाच ॥ हे ब्राह्मण ! मैं भ्रमकी नई प्राप्त हुआ हौं, इसते अधिक पूछना नहीं जानता, अरु अत्यंत प्रबुद्ध भी नहीं, अब क्या पूछौं । बसिष्ठ उवाच ।। हे रामजी ! यह प्रश्न कर कि, कारणविना जगत् कैसे उत्पन्न हुआ है, जब विचार कारकै कारणका अभाव जानैगा, तब परम स्वभाव अशब्द पदविषे विश्रांतिको पावैगा ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! मैं यह जानता हौं कि, कारणके अभावते जगत्