पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९१२

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वियावादबौधोपदेशवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६. ६ १७९३). भासता हैं, सच आकाशरूप हो जाता है ॥ राम इलाच ।। हे भगवन् । अनेक जन्मकी जो वासना दृढ हो रही है, अरु अनेक शाखाकार पसरी हैं, संसारका कारण घोर वासना है, सो कैसे शौत होती है १॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । जब इसको यथाभूतार्थ ज्ञान होता है, तब भ्रांतिरूप जगत् स्थित हुआ, आत्माविषे शांत होता है, जब पिंडाकार अर्थ पदार्थ सो जाता है, तब कर्मरूप दृश्यचक्र शांत हो जाता है, जैसे स्वप्न पदार्थ जाग्रतविषे नष्ट हो जाता है, तैसे आत्मतत्त्व बोधकार सब वासना नष्ट हो जाती है ॥ राम उवाच ॥ हे मुनीश्वर | जब पिंड ग्रहण निवृत्त हुआ अरु कर्मरूप दृश्यचक्र निवृत्त हुआ, तब बहार क्या प्राप्त होता है। ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! पिंडग्रहणभ्रम शांत होता है, तब संकुचन अरु क्षोभते रहित होता है, जगत् आस्था दृश्यकी शांति हो जाती है, अरु चित्त परमात्मतत्त्वको प्राप्त होता है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् । यह बालकके संकल्पवत् कैसे स्थित है, जो संकल्परूप है, तो इसके जो जडविषे पदार्थ हैं, तिनके नष्ट हुये इसको दुःख क्यों प्राप्त होता हैं। इस जगतकी आस्था शांत कैसे होती है? ।। वसिष्ठ उवाच ।। हे रामजी ! जो पदार्थ संकल्पकार उत्पन्न हुआ है, तिसके नष्टविषे दुःख नहीं होता, जो पूर्व अपर विचार कारकै चित्तते रचा जानियेतौ भ्रम शांत हो जाता है॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! चित्त कैसा है, तिसकार रचा कैसे विचारिये १॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी। चित्तसत्ता जो चैत्योन्मुखत्व फुरतीहै, तिसको संकल्परूप चित्त कहते हैं, तिसते रहित विचारणेसों वासना शत हो जाती है ॥ राम उवाच ॥ हे ब्राह्मण ! चैत्यते रहित चित्त कैसे होता है, अरु चित्तकार उदय हुआ चैत्य जगत् निर्वाण कैसे होता है ? ।। वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । चित्त कछु उत्पन्न नहीं भया,अन होता द्वैत भासता है, कछु है नहीं। राम उवाच ॥ हे भगवन्! जगत् प्रत्यक्ष भासता है, जो उपजा नहीं तो इसका अनुभव कैसे होता है । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! अज्ञानीको जैसे जगत् भासता है, सो सत् नहीं, अरु जो ज्ञानवान्को भासता है, सो अवाच्यसत्ता अद्वैतरूप है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! अज्ञानीको तीनों जगत् कैसे भासते हैं, जो सत नहीं, ज्ञानवान्को कैसे