पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(९७५)
वसिष्ठेश्वरसंवादे चैतन्योन्मुखत्वविचारवर्णन–निर्वाणप्रकरण ६.

देवकी संज्ञा व्यवहारके निमित्त तत्त्ववेत्ताने कल्पी है, सो एक देव चिन्मात्र है, सूक्ष्म है, सर्वव्यापी है निरंजन है, आत्मा है, ब्रह्म है, इत्यादिक नाम ज्ञानवान‍्ने शास्त्रबुद्धि उपदेश व्यवहारके निमित्त रक्खे हैं॥ हे मुनीश्वर! जेता कछु विस्तारसहित जगत् भासता है, सो सबका प्रकाश वही है, अरु सबते रहित है, सो नित्य शुद्ध अद्वैतरूप है, सब जगतविषे अनुस्यूत है, जैसे वसंतऋतुविषे नानाप्रकारके फूल वृक्ष भासते हैं, अरु सर्वविषे एकही रसव्यापार है, वही अनेकरूप हो भासता है, तैसे एकही आत्मसत्ता अनेकरूप होकरि भासती है॥ हे मुनीश्वर! जेता कछु जगत है, सो आत्मा का चमत्कार भासता है, आत्मतत्त्वविषे स्थित है, कहूं आकाशरूप होकरि स्थित है, कहूं जीवरूप होकरि स्थित है, कहूं चित्तरूप, कहू अहंकाररूप होकरि स्थित है, कहूं दिशारूप, कहूं द्रव्यरूप, कहूं भाविकारूप, कहूं तमरूप, कहूं प्रकाशरूप होकरि स्थित है, कहूं सूर्य, कहूं पृथ्वी, कहूं जल, कहूं अग्नि, वायु आदिक स्थावरजंगमरूप होकरि वही स्थित है, जैसे समुद्रविषे तरंग बुद्बुदे होते हैं, तैसे एक परमात्मा देवविषे त्रिलोकियां हैं॥ हे मुनीश्वर! देवता दैत्य मनुष्य आदिक सब एक देवविषे पड़ बहते हैं, जैसे जलविषे तृण बहते हैं, तैसे परमात्माविषे जीव बहते हैं, वही चेतनतत्त्व चतुर्भुज होकरि दैत्योंको नाश करता है, जैसे जल मेघरूप होकरि धूपको रोकता है, वही चेतनतत्त्व त्रिनेत्र, मस्तकपर चंद्रधारी, वृषभके उपर आरूढ, पार्वतीरूपी कमलिनीके मुखका भँवरा, रुद्र होकरि स्थित होता है, अरु वही चेतन विष्णुरूप सत्ता है, तिसके नाभिकमलते उत्पन्न हुआ ब्रह्मा, त्रिलोकी वेदत्रयरूप कमलिनीकी तलावडी होकरि स्थित भया है॥ हे मुनीश्वर! इसप्रकार एकही चेतनतत्त्व अनेकरूप होकरि स्थित भया है, अरु जैसे एकही रस अनेकरूप होकरि स्थित होता है, अरु जैसे एकही स्वर्ण अनेक भूषणरूप होकरि स्थित होता है, तैसे एकही चेतन अनेकरूप होकरि स्थित होता है, ताते सर्व देह एक चेतनतत्त्वके हैं, जैसे एक वृक्षके अनेक पत्र होते हैं, तैसे एकही चेतनके सर्व देह हैं वही चेतन मस्तकपर चूडामणि धारणहारा त्रिलोकपति