पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९४५

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( १८२६) यौगवासिष्ठ । हुई, श्रुति अरु पुराणकार सुनाजाता है, कि महाप्रलयसों बहुरि सृष्टि उत्पन्न भई है, अरु दूसरा प्रश्न यह है, जंबूद्वीपविषे कोङ मृतक भया अथवा कहूँ अपर ठौर गया हुआ मृतक भया, तो उसका वह शरीर तौ वहाँ भस्म हो गया, अरु परलोकविषे पुण्यपापका फल दुःख भोगता है, जिस शरीरकर भोगता है, तिस शरीरका कारण कोऊ नहीं, जो तुम कहौ पुण्य अरु पाप शरीरका कारण है, तौ घुण्यपाप आपही निराकार हैं, तिनते साररूप शरीर कैसे उपजे, अरु जो तुम कहो, परलोक कोऊ नहीं, धुण्यपाप भी कोऊ नहीं, तौ श्रुति अरु पुराणके वनों साथ विरोध होता है, सबही वर्णन करते हैं, जो मरिकार परलोक जाता हैं, जैसे कर्म किये हैं, तैसे भोगता है, अरु जिस शरीर साथ भोगता है, तिसका कारण कोऊ नहीं, न कोऊ पिता है, न माता हैं, सो शरीर कैसे उत्पन्न भयो अरु तीसरा प्रश्न यह है, कि यह परलोकविषे जाता हैं, इसके निमित्त दान पुण्य करते हैं, उनका फल इसको कैसे प्राप्त होता है, अरु चतुर्थ प्रश्न यह जो महाप्रलयते ब्रह्मा उत्पन्न भया है, उसका नाम स्वयंभू कैसे हुआ है, जो महाप्रलयते न उपजा होवे, अरु अपना आपहीते उपजा होवै, इस कारणते स्वयंभु कहता है, अरु महाप्रलयविषे शेष अद्वैत रहा था, तिसते उत्पन्न भयो है, तौ भी स्वयंभू कैसे कहिये, जो कहौ, स्वयंभू अपने आपते उपजता हैं, अपना आप आत्मा है, सो सबका अपना आप है, अब क्यों नहीं, तिसते स्वयं ब्रह्मा उत्पन्न होता, अरु पंचम प्रश्न यह है, जो एक पुरुष था, तिसका एक मित्र था, एझ शत्रु था, तिन दोनोंने प्रयागविषे जाइकार करवत लिया, जो इसका मित्र था, तिसने वॉछा करी कि मेरा मित्र चिरकाल जीवता रहे, चिरंजीव होवे, दूसरेने यह संकल्पधारा कि मेरा शत्रु इसी कालविषे मरि जावै ॥ हे मुनीश्वर ! एकही कालविषे दो अवस्था कैसे होवेंगी, अरु षष्ठ प्रश्न यह है, जो सहस्रही मनुष्य ध्यान लगाइ बैठे हैं, हम इसी आकाशके चंद्रमा होवें, सो एकही आकाशविर्षे सहस्र चंद्रमा कैसे होवैगे, अरु सप्तम प्रश्न यह हैं, कि सहस्त्र पुरुष ध्यान लगाये बैठे हैं, एक सुंदर स्त्री बैठी थी तिसके