पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९६०

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मोक्षौपायवर्णन-निवाणकरण उत्तरार्द्ध ६, ( १८४१) करी है, हम निःसंताप पदको प्राप्त भयेहैं । वाल्मीकि उवाच ॥ हे साधो! जब इसप्रकार सब कह रहे, तब वसिष्ठजी कहत भये । हे रामजी । इस मोक्षउपाय कथाको सुनिकर जेते कछु ब्राह्मण हैं, तिनको यथायोग्य पूजन करहु, अरु दान करहु, जो इतर जीव हैं, सो भी यथायोग्य यथा शक्ति पूजन करते हैं, तुम तौ राजा हौ, जब इसप्रकार वछिन्नीने कहा तब राजा दशरथ उठिकार दशसहस्त्र ब्राह्मण मथुरावासी विद्यावानोंको भोजन कराया, दक्षिणा वस्त्र भूषण घोडे गाँव आदिक दिये, यथायोग्य पूजन किया, बडा उत्साह हुआ, अंगना नृत्य करने लगीं, लगारे सहनाई बाजिंत्र बाजे हैं, चक्रवर्ती राजा होकाई उक्साह करत भया, अलग त्रिलोकका राजा है, इसप्रकार सप्त दिनपर्यंत ब्राह्मण अतिथि निर्धन सर्वको व्यकार पूजन किया, अन्न अरु वस्त्र आदिककर सबको प्रसन्न किया ॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाणप्रकरणे उत्साहवर्णन नाम दिशाधिकाष्ठाशीतितमः सर्गः ॥ २८८ ॥ ८ द्विशताधिकेकोलचतितमः सर्गः २८९. मोक्षोपायवर्णनम् । वाल्मीकिरुवाच ॥ हे भारद्वाज ! इसप्रकार वसिष्ठभुनिके वचन सुनिकार रघुवंशी कृतकृत्य हुये, जैसे राजी सुनकर संशयते रहित जीवन्मुक्त हुये विचरे हैं, तैसे तुम भी विचरौ, यह मोक्षउपाय ऐसा है, जो अज्ञानी श्रवण करै सो भी परमपदको प्राप्त होवे, तुम्हारी क्याबात है, तुम तौ आगे भी बुद्धिमान हौ, अरु जिसप्रकार सुझको ब्रह्माजीने कहा था, सो मैंने तुमको सुनाया है, जैसे रामजी आदिक कुमार अरु दशरथ आदिक राजे जीवन्मुक्त होकार विचरे हैं, तैसे तुम भी विचरौ, उनविषे मोह भी इष्ट आया है, परंतु वरूपते चलायमान नहीं, भये, तैसेही विचरौ, अरु ज्ञान जैसा सुख अपर कोऊ नहीं अरु अज्ञान जैसा दुःख कोऊ नहीं, इसते अधिक कैसे कहिये ११९