पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९६१

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( १८४२) योगवासिष्ठ । यह जो मोक्ष उपाय मैंने तुझको कहा है, सो परम पावन हैं, अरु संसारसमुद्रते पार कररनेहारा है, दुःखरूपी अंधकारको नाशकत्ता सूर्य रूप है, सुखरूपी कमलकी खानका ताल है, जो पुरुष इसका वारंवार विचार करे, सो तौ महामूर्ख होवे तो भी शांतपदको प्राप्त होवै, जो को इस मोक्ष उपायको पढगा, कथा करेगा, अरु सुनैगा, अरु लिखेगा, अरु लिखकार पुस्तक देवैगा, जो हृदयविर्षे कामना होवेगी, तौ ब्रह्म लोकको प्राप्त होवैगा, सो राजसूययज्ञके फलको पावैगा, अरु बारे विचारकारे ज्ञानको पावैगा, अरु मुक्त होवैगा ।। हे अंग | यह जो मोक्ष उपाय है, सो बडा शास्त्र हैं, इसविषे बडी कथा हैं, नानाप्रकारकी युक्तियां हैं, तिन कथा अरु युक्तिकारकै वसिष्ठजीने रामजीको जगाया है, सो मैं तुझको सुनया है, अपने उपदेशकार तिसको जीवन्मुक्त किया अरु कहत भया कि तुम राज्यलक्ष्मी भोग, सोई मैं तुझको कहता हौं, जो जीवन्मुक्त होकर अपने तप कर्मविषे सावधान होवहु, अरु निश्चय आत्मसत्ताविर्षे रखना, इस उपदेशकारकै रघुवंशी कृत्यकृत्य भये हैं, सो मैं तुझको ज्योंका त्यों कहा है, इस निश्चयको धारिकारे कृत्यकृत्य हो, जितने इतिहास कथा हैं, तिनके भिन्न भिन्न नाम सुनडु, वैराग्य प्रकरणविषे संपूर्ण रामजीके प्रश्न हैं ।। १ ।। अरु मुमुक्षुप्रकरणविषे शुकनिर्वाणही कहा है। अरु उत्पत्तिप्रकरणविषे यह अष्ट आख्यान कहे हैं । एक आकाशजका १, दूसरा लीलाका २, तीसरा सूचीका ३, चतुर्थ ईद ब्राह्मणके पुत्रका ४, पंचम कृत्रिम इंद्र अरु अहल्याका ५, षष्ठ चित्तो पाख्यान ६, सप्तम वाल्मीकिकी कथा ७, अष्टम साबरका आख्यान ८॥ स्थिति प्रकरणविषे चार आख्यान कहे हैं। एक भृशु सुतका १, दूसरा दाम व्याल कटका २, तीसरा भीम भास दटका ३, चतुर्थ दासुरका ४, उपशमप्रकरणविषे एकादश आख्यान कहे हैं। एक जनककी सिद्धगीता १, दूसरा जो है पुण्यपावनका २, तीसरा बलको विज्ञानकी प्राप्तिका वृत्तांत ३, चतुर्थ महादविश्रांति ४, पंचम गाधिका वृत्तांतः, षष्ठ उद्दालक निर्वाण ६,सप्तम सुरगनिश्चय ७, अष्टम परधनिश्चय ८, नवम भासका, दृशम विलाससंवादका १०, एकादश वीतवका ११॥ निर्वाणप्रकरणविषे