पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/१३६

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क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? / 137
 

इत्यादि कहा है। यदि हम यह मान लें कि परमात्मा स्वयं भी देह धारण करता है तो उपर्युक्त सभी गुण व्यर्थ हो जाते हैं।

अवतारों का अभिप्राय महापुरुषों से है

नि:सदेह अवतारों से अभिप्राय यदि ऐसे महापुरुषों से है जिनकी शिक्षा-दीक्षा से, जिनकी जीवन-प्रणाली से दूसरे मनुष्य अपने जीवन को उत्तम बना सकते हैं और इस संसार-रूपी समुद्र से तैरकर पार हो जाते हैं, तो कोई हानि नहीं। इस बात से कौन इन्कार कर सकता है कि संसार में समय-समय पर ऐसे लोगों की अत्यन्त आवश्यकता पड़ती है और ऐसे लोग समय-समय पर जन्म भी लेते हैं जिनकी शिक्षा-दीक्षा, आदेश और उपदेशों से तथा जिनके जीवन की पवित्रता से दूसरे लोग लाभ उठाते है। जीवन के इस तूफान-भरे समुद्र में भूलों-भटकों और भँवर में पड़ी हुई नावों के लिए वे मल्लाह का काम करते है तथा अत्यन्त निराश, हतोत्साही अशान्त और व्याकुल आत्माओं को शान्ति देते हैं। ऐसे लोग संसार की प्रत्येक जाति में उत्पन्न होते है और वे उन मुक्त आत्माओं की श्रेणी में से आते हैं जिनको अपनी उच्च आत्मिक शक्ति के कारण दूसरे मनुष्यों की अपेक्षा परमात्मा की निकटता प्राप्त होती है। इनमें अन्यान्य जीवों से अधिक ईश्वरीय शक्तियाँ होती है। यह ईश्वरीय शक्ति कितनी ही अधिक क्यों न हो फिर भी ईश्वर ईश्वर ही है और मनुष्य मनुष्य ही है। मनुष्य कभी ईश्वर नहीं हो सकता। और न आत्मा परमात्मा के पद को प्राप्त हो सकती है।

हमारा विश्वास है कि यह सब पूर्णपुरुष ईश्वर के उस नियम को फैलाने, समझाने और प्रचार करने के लिए जन्म लेते हैं जो ईश्वर ने सृष्टि के आदि में अपने जनों के कल्याण के लिए निज ज्ञान दिया था और जिसे संस्कृत भाषा में वेद कहते हैं। अतः यदि कृष्ण महाराज को इस सिद्धान्त से अवतार कहा जाय तो कोई हानि नहीं।

क्या कृष्ण ने स्वयं कभी परमेश्वर के अवतार होने का दावा किया?

श्रीकृष्ण के जीवन की जो घटनाएँ हमने गत पृष्ठों में वर्णन की हैं, उनसे यही प्रमाणित होता है कि कृष्ण ने स्वयं कभी अवतार होने का दावा नहीं किया। भगवद्‍गीता के अतिरिक्त महाभारत के और किसी हिस्से में ऐसे दावे का प्रमाण भी नहीं मिलता। भगवद्‍गीता श्रीकृष्ण की बनाई हुई नहीं है इसलिए भगवद्‍गीता का प्रमाण इस विषय को पूर्ण रूप से पुष्ट भी नहीं कर सकता। परन्तु यदि आप प्रश्न करें कि भगवद्‍गीता के बनाने वाले ने क्यों ऐसी युक्ति दी जिससे यह परिणाम निकलता कि कृष्ण महाराज अपने आपको अवतार समझते थे? इसका उत्तर यह है कि अपने कथन को विशेष माननीय और प्रामाणिक बनाने के लिए उन्होंने ऐसा किया। भगवद्‍गीता का वह भाग जिसमें कृष्ण अपने को परमात्मा या परमात्मा का अवतार मानकर उपदेश करते हैं, यह प्रकट करता है कि गीता एक प्राचीन पुस्तक नहीं है, क्योंकि वैदिक साहित्य में जिसमें ब्राह्मण उपनिषद् और सूत्रादि भी शामिल है उसमें इस प्रकार के बहुत कम