पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/२०

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18. यागिराज श्रीकृष्ण
 


का विवरण दिया गया है। यह पुस्तक 'भारत शिष्य ईसा' नाम से 1914 में प्रकाशित हुई थी। लाला लाजपतराय-रचित कृष्णावरित का यह अनुवाद द्वितीय बार पं० शंकरदन शर्मा द्वारा वैदिक पुस्तकालय मुरादाबाद से 1924 में प्रकाशित हुआ था।

प्रस्तुत संस्करण : लाला लाजपतराय की अमर कृति को एक बार पुनः हिन्दी पाठको के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। आज से लगभग 80 वर्ष पूर्व जब यह अनुवाद हुआ था तो अनुवाद की भाषा में परिष्कार का अभाव था। हमारा प्रयास रहा है कि अनुवाद की भाषा को आद्यन्त परिष्कृत परिमार्जित तथा परिशोधित किया जाये। ऐसा करने से अनुवाद में प्राञ्जलता, प्रासादिकता तथा सहजता आ गई है। किताबघर दिल्ली के संचालक श्री सत्यव्रत शर्मा ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लाला लाजपतराय द्वारा रचित महापुरुषो के कतिपय जीवनचरितों को संशोधित तथा सुसंस्कृत रूप में पुनः हिन्दी पाठकों के समक्ष लाने का पुरुषार्थ किया है, एतदर्थ वे हम सबके साधुवाद के पात्र हैं। आशा है भारतीय धर्म, सस्कृति तथा जीवनदर्शन के महान् प्रेरणास्रोत योगिराज कृष्ण के इस जीवनचरित को पढ़कर हम सबमें कर्तव्यबोध जागृत होगा।


रचनाकार, नन्दन वन, जोधपुर‌‌‌-भवानीलाल भारतीय
कार्तिक अमावस्या (दीपोत्सव)
2054 वि.