पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/४०

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भूमिका / 39
 


कल्पित मानते है।[१] हमारी राय में ये दोनों कथन मिथ्या हैं, जिसके प्रमाण ये है--

(1) कृष्ण और अर्जुन की वंशावली का पूरा-पूरा पता चलता है। उनके वंश में अनेक राजा-महाराजा हुए हैं जिन्होंने ऐतिहासिक समय में राज्य किया है।

(2) सारे संस्कृत साहित्य का प्रमाण उपर्युक्त कथन का खण्डन करता है। (जैसा कि हमने ऊपर वर्णन किया है)

(3) कथा और कथा से संबंध रखने वालों के नाम सर्वसाधारण में प्रसिद्ध हैं तथा देश के उन प्रान्तों में भी विदित हैं जहाँ सहस्रों वर्ष से पढ़ने-लिखने का चिह्न नहीं पाया जाता। फिर कथा संबंधी पुरुषों के नाम से प्राय: स्थानों के भी नाम मिलते हैं। यदि नाम कल्पित होते तो ऐसा कदापि संभव न था।

(4) महाभारत कथा के जो अनेक संदर्भ संस्कृत साहित्य में पाये जाते है उनसे भी कथा की बहुत-सी घटनाओं की पुष्टि होती है।

(5) यदि इस कथा को यथार्थ माने तो कथा संबंधी नामों को कल्पित मानने का कोई विशेष कारण नहीं दीख पडता, तथा उसमें यह भी प्रश्न उठता है, कि यदि ये नाम कल्पित हैं तो कथा के यथार्थ नायकों के नाम क्या थे?

(6) कृष्ण को अवतार के तुल्य माना जाना इस बात की पुष्टि करता है कि कृष्ण किसी कल्पित व्यक्ति का नाम नहीं था।

(7) हमारे विपक्षी अपने इस कथन के समर्थन में कोई प्रमाण नहीं देते। कोई ग्रंथकार तो इस बात का सहारा लेते है कि प्राचीन आर्यावर्त में एक स्त्री के कई पति होने की प्रथा न थी एवं द्रौपदी का पाँच पाण्डवों से विवाह करना एक अत्युक्ति है जो यथार्थ घटना नहीं है। परन्तु महाभारत के पढ़ने वालों को मालूम है कि ग्रंथकार ने इस घटना को अपवाद (Exception) के रूप में वर्णन किया है और इसके लिए कारण विशेष दिखलाया है।[२] पुन ऐसे प्रबल प्रमाणों के उपस्थित रहते हुए कुछ महानुभावों की यह राय प्रमाणित नहीं कही जा सकती और न हम कृष्ण तथा अर्जुन प्रभृति नामों को कल्पित मान सकते हैं।

(12) क्या कृष्ण परमात्मा के अवतार थे?

इस पुस्तक में कृष्ण विषयक जो घटनाएँ हमने एकत्र की हैं उनके पढ़ने से पाठकों को यह विदित हो जाएगा कि कृष्ण महाराज का अवतार मानना कहाँ तक सत्य है। हमारी राय है कि कृष्णचन्द्र ने कभी स्वयं इस बात का दावा नहीं किया और न उनके समय में किसी ने उनको यह पदवी ही दी। ये बातें नई गढ़न्त है और बौद्ध समय के पश्चात् प्रचलित हुई है।

समस्त वैदिक साहित्य अवतार सिद्धान्त के विरुद्ध है। वेद पुकार-पुकारकर कहता है कि परमेश्वर कभी देह धारण नहीं करता।[३] यूरोपीय विद्वान् भी इस बात में हमसे सहमत हैं और कहते हैं कि अवतारों का सिद्धान्त बौद्धमन के पश्चात् प्रचलित हुआ। इससे पहले भारतवर्षष

  1. वेयर, मोनियर विलियम्स तथा रमेशचन्द्र दत्त की यही धारणा थी।
  2. अनेक विद्वानो ने महाभारत के अन्त:साक्ष्य से ही द्रौपदी के बहुपतित्व का निराकरण किया है। द्रष्टव्य-कौन कहता है द्रौपदी के पाँच पति थे?--अमर स्वामी सरस्वती।
  3. वेदों में ईश्वर को अब अकाय अचण अदि विशेषणे ने सम्बोधित किया गया है।