पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/७४

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दसवाँ अध्याय
कृष्ण का विवाह

बरार[१] के राजा भीष्मक की रूपवती पुत्री का नाम रुक्मिणी था। कृष्ण इसके सौन्दर्य का हाल सुनकर उस पर आसक्त हो गए। यह प्रेम दोनों ओर से था। वह भी कृष्णचन्द्र के रूप और गुणों पर मोहित थी। उसकी मनोकामना यही थी कि किसी प्रकार कृष्ण महाराज मेरा पाणिग्रहण करें। पर इसमें एक रुकावट यह थी कि उसका पिता भीष्मक राजा जरासंध के दबाव में था। उसने जरासंध की सम्मति से रुक्मिणी की मँगनी चेदि के राजा शिशुपाल से कर दी, जो जरासंध का सेनापति था। यहाँ तक कि विवाह का दिन नियत कर दिया गया और शिशुपाल अपने स्वामी जरासंध के साथ विवाह करने आ पहुँचा। जब कृष्ण को खबर मिली कि रुक्मिणी का पिता उसका विवाह करने लगा है तो वे (कृष्ण) भी बलभद्र और दूसरे साथियों सहित भीष्मक की राजधानी कुण्डिनपुर जा पहुँचे और जब रुक्मिणी मन्दिर से लौटती हुई अपने घर जा रही थी तो उसे अपने रथ में बिठाकर ले चले।[२] रुक्मिणी के भाई रुक्मी ने जब यह लीला सुनी तो वह बड़ा कुपित हुआ और उनका पीछा किया। जब दोनों की मुठभेड़ हुई, तो रुक्मी परास्त हुआ और निश्चय था कि वह मारा जायेगा तब उसकी बहन ने उसका पक्ष लिया और उसकी जान बचाई। इस तरह रुक्मी को नीचा दिखाकर श्रीकृष्ण रुक्मिणी को लेकर द्वारिका आए, और राक्षस[३] रीति से उससे विवाह कर लिया।

इस विवाह से प्रद्युम्न उत्पन्न हुआ जिसका महाभारत में स्थान-स्थान पर वर्णन आया है।

 

  1. यह विदर्भ देश के नाम से जाना जाता है।
  2. किसी-किसी पुराण में वर्णन है, कि रुक्मिणी ने स्वयं कृष्ण को संदेश भेजा और मंदिर जाने के बहाने अपने पिता के महल से निकल पड़ी और अपनी इच्छा से कृष्णचन्द्र के साथ चली गई।
  3. स्मृति शास्त्रों में विवाह 8 प्रकार का कहा है जिनमें से एक को राक्षस विवाह कहते हैं। जब कोई क्षत्रिय किसी लड़की को उसकी इच्छा के विरुद्ध लड़कर या चोरी से भगा ले जाता था और उससे विवाह कर लेता था, तो उसे राक्षस विवाह कहते थे। महाभारत में लिखा है कि भीष्म पितामह ने काशी के राजा की दो कन्याओं का इसी तरह हरण करके अपने भाइयों से उनका विवाह किया था। महाराज पृथ्वीराज का संयोगिता को ले जाकर उससे विवाह करना एक ऐतिहासिक घटना है। इसी तरह अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ विवाह किया था। पुराणों मे कृष्ण की अनेक रानियों का वर्णन आता है, पर इसका पता लगाना कठिन जान पड़ता है कि वास्तव में कितनी थीं। यह तो निश्चित है कि रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पटरानी थी। विष्णुपुराण, भागवत और हरिवंश के भिन्न-भिन्न वृत्तान्तो से जान पड़ता है कि कृष्ण की आठ रानियाँ थीं।

    टिप्पणीबंकिमचन्द्र ने एकमात्र रुक्मिणी को ही कृष्ण की पत्नी माना है (सम्पादक)