पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/९२

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92/ योगिराज श्रीकृष्ण
 

 एक ओर धृतराष्ट्र और भीष्म जैसे सज्जन और ज्येष्ठ पुरुष, दूसरी ओर द्रोण जैसे आचार्य तीसरी ओर शूरवीर और धनाढ्य राजा-महाराजा थे। युधिष्ठिर चकित था कि ऐसी भारी सभा म मै किसे सबका शिरोमणि मानें। निदान उसने महाराज भीष्म से प्रार्थना करते हुए कहा कि आप ही मुझे बताइये कि इस महती सभा मे कौन महापुरुष मुझसे पहले सम्मान (अर्घ्य) पाने का अधिकारी है।

भीष्म ने उत्तर दिया, “हे युधिष्ठिर! इस सभा मे कृष्ण सूर्य के समान चमक रहे है। वहीं सबसे बढ़कर गौरवपात्र है। उटिये! और सबसे पहले उन्हीं को भेंट (अध्य) दीजिए!"

युधिष्ठिर ने कहा, “तथास्तु।"

भीष्म के यह कहते ही जहाँ एक ओर आनन्द की ध्वनि गूंज उठी, वहाँ दूसरी ओर मानो वज्र टूट पड़ा! विघ्नतोषी लोगों की आशाओ पर पानी फिर गया, और सन्नाटा छा गया। तत्काल सबको लगा कि बस कुछ बखेड़ा अवश्य होगा। अतिथियों की मंडली में चेदि देश का राजा शिशुपाल बैठा हुआ था। यह महाराज कृष्णचन्द्र का मौसेरा भाई था पर सदा से ही जरासंध का पक्ष लेकर कृष्ण से लड़ता आया था। भीष्म के वचन सुनकर वह क्रोधान्ध हो गया और भीष्म, युधिष्ठिर तथा कृष्ण को बुरा-भला कहने लगा। उसके कथन का सार यह था कि युधिष्ठिर और भीष्म ने सर्वप्रथम कृष्ण को अर्घ्य देकर सारी सभा का अपमान किया है। कृष्ण क्दापि इस मान के योग्य नहीं है। न तो वे मुकुटधारी राजा है और न वयस् में बड़े है। न वे आचार्य हैं और न सबसे बलवान् योद्धा हैं। फिर क्यों उन्हें इस प्रकार सबसे ऊँचा आसन प्रदान किया गया? फिर शिशुपाल ने उपस्थित राजाओं के नाम लिए और भीष्म को चुनौती देते हुए कहा कि आप ही बताइये, इन सबको उपस्थिति मे क्यों कृष्ण की यों प्रतिष्ठा की गई? उसने कहा कि यदि वयस् का विचार हो तो उसके पिता वसुदेव, धृतराष्ट्र, द्रुपद, भीष्म और कृपाचार्य आदि ज्येष्ठ पुरुष उपस्थित है। यदि विद्या देखी जाये तो द्रोण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा तथा दूसरे महान् विद्वान् यहाँ उपस्थित है। राजाओं में भी बड़े-बड़े वीर योद्धा राजा दीख रहे हैं। फिर भीष्म ने इस मान के लिए कृष्ण का नाम ही क्यों लिया जो न आचार्य है, न राजा है, न वयस् में बड़ा और न महाबली है।

उसने आगे कहा, जिसने छल से राजा जरासंध का वध किया, बड़े दुख की बात है कि उसे अर्घ्य देकर भीष्म ने पक्षपातपूर्ण अधर्म का काम किया है और सबसे अधिक दुख इस बात का है कि युधिष्टिर ने धर्म का अवतार होकर भी इस निर्णय को मान लिया। पुनः धिक्कार है कृष्ण पर जिसने इस अधम व्यवस्था को स्वीकार किया।

इसके पश्चात् महाभारत में लिखा है कि वह अपने साथियों सहित सभा से उठकर चल दिया। युधिष्ठिर उसके पीछे गया और उसे मनाने लगा। उसने कहा, "शिशुपाल! देखो, जितने विद्वान् और योद्धागण यहाँ बैठे हैं वे सब इस बात को मानते है कि कृष्ण ही इस सम्मान के उपयुक्त हैं। फिर तू क्यों ऐसे कठोर वचन बोलता है?"

भीष्म न भी अपने उत्तर में कहा कि शिशुपाल धर्म मार्ग का नहीं जानता क्षत्रियों को यह